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Natyashastra Ki Khoj
₹595 ₹446
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Kyap
Publisher:
Vani prakashan
| Author:
Manohar Shyam Joshi
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹250 ₹125
Save: 50%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Weight | 500 g |
---|---|
Book Type |
SKU:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
150
मनोहर श्याम जोशी 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में जन्मे, लखनऊ विश्वविधालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावजूद रोजी-रोटी की ख़ातिर छात्र जीवन से ही लेखक और पत्राकार बन गये। अमृतलाल नागर और अज्ञेय इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद अपने 21वें वर्ष से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गये। प्रेस, रेडियो, टी.वी., वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने कलम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा। पहली कहानी तब छपी थी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने आये। केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से होते हुए सन् 1967 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् 1984 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से स्वतन्त्र लेखन करते रहे। 30 मार्च 2006 को निधन।
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Description
मनोहर श्याम जोशी 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में जन्मे, लखनऊ विश्वविधालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावजूद रोजी-रोटी की ख़ातिर छात्र जीवन से ही लेखक और पत्राकार बन गये। अमृतलाल नागर और अज्ञेय इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद अपने 21वें वर्ष से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गये। प्रेस, रेडियो, टी.वी., वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने कलम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा। पहली कहानी तब छपी थी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने आये। केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से होते हुए सन् 1967 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् 1984 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से स्वतन्त्र लेखन करते रहे। 30 मार्च 2006 को निधन।
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