Amritlal Nagar

अमृतलाल नागर, हिंदी साहित्य के एक विशिष्ट स्तंभ थे। 1916 में जन्मे नागर जी ने औपचारिक शिक्षा हाईस्कूल तक ही प्राप्त की, लेकिन अदम्य जिज्ञासा और स्वाध्याय के बल पर उन्होंने साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व और समाजशास्त्र में गहन ज्ञान अर्जित किया। हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला और अंग्रेजी भाषाओं पर भी उनका अच्छा अधिकार था।

लेखन कार्य:

नागर जी ने अपनी शुरुआती रचनाओं में ‘मेघराज इंद्र’ और ‘तस्लीम लखनवी’ नामक उपनामों का प्रयोग किया। बाद में उन्होंने ‘अमृतलाल नागर’ नाम अपनाया और कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, आलोचनात्मक निबंधों और यात्रा वृत्तांतों सहित विभिन्न विधाओं में रचनाएँ प्रस्तुत कीं।

साहित्यिक विशेषताएं:

  • सरल भाषा: नागर जी की भाषा सहज, सरल और पाठकों को आकर्षित करने वाली थी।
  • विविधतापूर्ण शैली: उन्होंने भावनात्मक, वर्णनात्मक और शब्द चित्रात्मक शैलियों का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया।
  • विषय वस्तु: उनकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थवाद, ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण, और मानवीय भावनाओं की गहन अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।
  • लखनऊ का चित्रण: लखनऊ के जनजीवन और बोली का अद्भुत चित्रण उनकी रचनाओं की विशेषता है।
  • गहन शोध: वे किसी भी विषय पर लिखने से पहले गहन शोध करते थे और ऐतिहासिक तथ्यों का सटीक चित्रण करते थे।

उल्लेखनीय रचनाएं:

  • उपन्यास: गबन, बंधन, सेटलमेंट, अनामदास, गिरिजा, अकाल के पंजे में
  • कहानियां: टेसू, गरीबों का हंस, बीबी मरियम, औरत, बेटी
  • नाटक: कठपुतली, काली अंधेरी, अंधेर नगरी चौपट राजा

पुरस्कार एवं सम्मान:

  • पद्म भूषण (1981)
  • काशी नागरी प्रचारिणी सभा
  • प्रेमचंद पुरस्कार
  • अखिल भारतीय वीर सिंह देव पुरस्कार
  • साहित्य वाचस्पति
  • उत्तर प्रदेश हिंदी संस्था का सर्वोच्च भारत भारती सम्मान

23 फरवरी 1990 को इस दुनिया को अलविदा कहने वाले अमृतलाल नागर ने हिंदी साहित्य को अमूल्य रत्न प्रदान किए। उनकी रचनाएं आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं और सामाजिक यथार्थ का सच्चा चित्रण प्रस्तुत करती हैं। अमृतलाल नागर एक कुशल फिल्म लेखक भी थे। उन्होंने सात सालों में 14 फिल्में लिखीं, जिनमें से आठ सुपरहिट रहीं।

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