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Samay Aur Marxwad
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Apni Apni Bimari
Publisher:
Vani prakashan
| Author:
Harishankar Parsai
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
₹250 ₹188
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In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Weight | 300 g |
---|---|
Book Type |
SKU:
SKU
9789388434812
Categories General Fiction, Hindi
Tags #Parsaiji, Modern and contemporary fiction: general and literary
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
140
हास्य और व्यंग्य की परिभाषा करना कठिन है। यह तय करना भी कठिन है कि कहाँ हास्य खत्म होता है और व्यंग्य शुरू होता है। व्यंग्य से हँसी भी आ सकती है, पर इससे वह हास्य नहीं हो जाता। मुख्य बात है कि वस्तु का उद्देश्य और सरोकार क्या है। व्यंग्य का सामाजिक सरोकार होता है। इस सरोकार से व्यक्ति नहीं छूटता। श्रेष्ठ रचना चाहे वह किसी भी विधामें क्यों न हो, अनिवार्यतः और अंततः व्यंग्य ही होती है। इस अर्थ में हम व्यंग्य को चाहे तो व्यंजनात्मकता के रूप में देख सकते हैं। व्यंग्य सहृदय में हलचल पैदा करता है। अपने प्रभाव में व्यंग्य करुणा, कटु कुछ भी हो सकता है, मगर वह बेचैनी ज़रूर पैदा करेगा। पीड़ित, मजबूर, गरीब, शारीरिक विकृति का शिकार, नारी, नौकर आदि को हास्य का विषय बनाना कुरुचिपूर्ण और क्रूर है। लेखक को यह विवेक होना चाहिए कि किस पर हँसना और किस पर रोना। पीटने वाले पर भी हँसना और पीटने वाले पर भी हँसना विवेक हीन हास्य है। ऐसा लेखक संवेदना-शून्य होता है।
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Description
हास्य और व्यंग्य की परिभाषा करना कठिन है। यह तय करना भी कठिन है कि कहाँ हास्य खत्म होता है और व्यंग्य शुरू होता है। व्यंग्य से हँसी भी आ सकती है, पर इससे वह हास्य नहीं हो जाता। मुख्य बात है कि वस्तु का उद्देश्य और सरोकार क्या है। व्यंग्य का सामाजिक सरोकार होता है। इस सरोकार से व्यक्ति नहीं छूटता। श्रेष्ठ रचना चाहे वह किसी भी विधामें क्यों न हो, अनिवार्यतः और अंततः व्यंग्य ही होती है। इस अर्थ में हम व्यंग्य को चाहे तो व्यंजनात्मकता के रूप में देख सकते हैं। व्यंग्य सहृदय में हलचल पैदा करता है। अपने प्रभाव में व्यंग्य करुणा, कटु कुछ भी हो सकता है, मगर वह बेचैनी ज़रूर पैदा करेगा। पीड़ित, मजबूर, गरीब, शारीरिक विकृति का शिकार, नारी, नौकर आदि को हास्य का विषय बनाना कुरुचिपूर्ण और क्रूर है। लेखक को यह विवेक होना चाहिए कि किस पर हँसना और किस पर रोना। पीटने वाले पर भी हँसना और पीटने वाले पर भी हँसना विवेक हीन हास्य है। ऐसा लेखक संवेदना-शून्य होता है।
About Author
हरिशंकर परसाई
22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में जन्मे हरिशंकर पारसाई का आरंभिक जीवन कठिन संघर्ष का रहा । पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया और फिर 'डिप्लोमा इन टीचिंग' का कोर्स भी ।
आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं -- हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का ज़माना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इक उम्र से वाकिफ हैं, जाने -पहचाने लोग, कहत कबीर, ठिठुरता हुआ गणतंत्र (व्यंग्य निबंध-संग्रह); पूछो परसाई से (साक्षात्कार)।
‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में आपकी सभी रचनाएँ संकलित हैं ।
आपकी रचनाओं के अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओँ और अंग्रेजी में हुए हैं ।
आपको केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार, मध्य प्रदेश के शिखर सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।
निधन : 10 अगस्त, 1995
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