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Arabpatiyon Jaisa Kaise Sochen?

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Pradeep Thakur
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

263

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1-4 Days

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Book Type

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SKU 9789386054760 Categories , Tag
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Page Extent:
168

क्या आपने स्वयं से कभी कहा है—हाँ, मैं अमीर बन सकता हूँ! हो सकता है कि कहा हो या फिर नहीं भी। यही अमीर बनने की पहली व सबसे बड़ी शर्त है। यदि इस पर गंभीरता से विचार-विमर्श नहीं किया और यों ही अपने मन को समझा लिया कि ‘मैं अमीर बन सकता हूँ।’ तो असल बात बन न सकेगी। इससे पहले अमीर बनने की यात्रा शुरू हो पाना संभव नहीं है, क्योंकि यही जीवन बदलने वाली महान् यात्रा का प्रस्थान बिंदु है। सबसे पहले आप यह मानें कि आपने सचमुच में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार नहीं किया है और फिर पूरी सहजता से पूछें, ‘क्या मैं अमीर बन सकता हूँ?’ हाँ, यह चिंतन-प्रक्रिया थोड़ी जटिल है, इसलिए न तो मन में उठ रहे भावों की तह में जाने से घबराएँ और न ही जल्दबाजी करें। खुद को सहज व संयत रखें और बस अपने विचारों को साक्षी भाव से देखें। ‘साक्षी भाव’ वह मनोदशा है, जब हम खुद के विचारों को बिना किसी पूर्वग्रह के खुद से अलग रखते हुए ‘गवाह’ (साक्षी) की तरह देखते हैं। यह वही स्थिति है, जब आप किसी घटना को उसमें शामिल हुए बिना ही देखते हैं। जब आप ऐसा करेंगे तो सब साफ होना शुरू हो जाएगा कि आपने अब तक ‘खुद’, ‘सफलता’ में कौन-कौन सी बाधाएँ खड़ी की हुई थीं। यह भी संभव है कि आपको लगे कि आपने इस मुद्दे पर इतनी गंभीरता से पहले कभी सोचा भी नहीं था। यदि ऐसा नहीं होता तो आप अमीरी-यात्रा पर कब के निकल चुके होते। खैर, इस प्रक्रिया को अब शुरू होना था तो अब सही।.

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Description

क्या आपने स्वयं से कभी कहा है—हाँ, मैं अमीर बन सकता हूँ! हो सकता है कि कहा हो या फिर नहीं भी। यही अमीर बनने की पहली व सबसे बड़ी शर्त है। यदि इस पर गंभीरता से विचार-विमर्श नहीं किया और यों ही अपने मन को समझा लिया कि ‘मैं अमीर बन सकता हूँ।’ तो असल बात बन न सकेगी। इससे पहले अमीर बनने की यात्रा शुरू हो पाना संभव नहीं है, क्योंकि यही जीवन बदलने वाली महान् यात्रा का प्रस्थान बिंदु है। सबसे पहले आप यह मानें कि आपने सचमुच में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार नहीं किया है और फिर पूरी सहजता से पूछें, ‘क्या मैं अमीर बन सकता हूँ?’ हाँ, यह चिंतन-प्रक्रिया थोड़ी जटिल है, इसलिए न तो मन में उठ रहे भावों की तह में जाने से घबराएँ और न ही जल्दबाजी करें। खुद को सहज व संयत रखें और बस अपने विचारों को साक्षी भाव से देखें। ‘साक्षी भाव’ वह मनोदशा है, जब हम खुद के विचारों को बिना किसी पूर्वग्रह के खुद से अलग रखते हुए ‘गवाह’ (साक्षी) की तरह देखते हैं। यह वही स्थिति है, जब आप किसी घटना को उसमें शामिल हुए बिना ही देखते हैं। जब आप ऐसा करेंगे तो सब साफ होना शुरू हो जाएगा कि आपने अब तक ‘खुद’, ‘सफलता’ में कौन-कौन सी बाधाएँ खड़ी की हुई थीं। यह भी संभव है कि आपको लगे कि आपने इस मुद्दे पर इतनी गंभीरता से पहले कभी सोचा भी नहीं था। यदि ऐसा नहीं होता तो आप अमीरी-यात्रा पर कब के निकल चुके होते। खैर, इस प्रक्रिया को अब शुरू होना था तो अब सही।.

About Author

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप ठाकुर को भारत के प्रमुख मीडिया समूहों (दिल्ली प्रेस, अमर उजाला व दैनिक जागरण) में विभिन्न संपादकीय पदों पर काम करने और विविध विषयों पर लिखने व विश्लेषण प्रस्तुत करने का दो दशक से भी अधिक समय का अनुभव प्राप्त है। उनकी अंग्रेजी में प्रकाशित कृतियाँ हैं: ‘टाटा नैनो: द पीपल्स कार’, ‘कैरीइंग धीरूभाई’, ‘विजन फॉरवर्ड: मुकेश अंबानी’, ‘द शाइनिंग स्टार ऑफ अमेरिका एंड द वर्ल्ड: बराक ओबामा’, ‘द किंग ऑफ स्टील: लक्ष्मी एन. मित्तल’, ‘अन्ना हजारे: द फेस ऑफ इंडिया अगेंस्ट करप्शन’, ‘एंजेलीना जोली: इज शी द मोस्ट पॉवरफुल सेलिब्रिटी’ और ‘टाइगर इन द वुड्स: द स्टोरी ऑफ नं. 1 स्पोर्ट्स-ब्रांड टाइगर वुड्स’।.

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