हरीचरन प्रकाश का बस्तियों का कारवाँ इस मायने में अनूठा है कि इसने भारत विभाजन की त्रासदी को सिन्धी कोण से देखा और दिखाया है। सिन्ध से आए शरणार्थियों का खयाल करें तो उनकी त्रासदी सांस्कृतिक भी जान पड़ेगी। उपन्यास में परिवेश का सजीव वर्णन और भाषा का सहज प्रवाह इसे पढ़ने में और रोचक बनाता है।
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Description
हरीचरन प्रकाश का बस्तियों का कारवाँ इस मायने में अनूठा है कि इसने भारत विभाजन की त्रासदी को सिन्धी कोण से देखा और दिखाया है। सिन्ध से आए शरणार्थियों का खयाल करें तो उनकी त्रासदी सांस्कृतिक भी जान पड़ेगी। उपन्यास में परिवेश का सजीव वर्णन और भाषा का सहज प्रवाह इसे पढ़ने में और रोचक बनाता है।
About Author
जन्म: 10 नवंबर 1950, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश। जीविका जीवन, उपकथा का अन्त, गृहस्थी का रजिस्टर, सुख का कुआँ खोदते हुए: दिन-प्रतिदिन (कहानी-संग्रह); एक गंधर्व का दुः स्वपन, बस्तियों का कारवाँ (उपन्यास) इनके द्वारा लिखित पुस्तकें हैं।
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