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I SURVIVED THE JOPLIN TORNADO, 2011
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Bharat Ki Shaikshik Dharohar
Publisher:
Vitasta Publishing Private Limited
| Author:
सहना सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hindi
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9788196041397
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Category: Uncategorized
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248
यूरोपीय विश्वविद्यालयों की स्थापना से बहुत पहले भारत में ज्ञानार्जन के बहु-विषयक केंद्र थे जिन्होंने विश्व भर में ज्ञान क्रांति को बढ़ावा दिया। यह पुस्तक भारत की महान शैक्षिक विरासत को कालक्रमानुसार दर्शाने की आवश्यकता को पूरा करती है। यह पुस्तक उस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का वर्णन करती है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि गुरुओं और आचार्यों द्वारा पीढ़ियों तक छात्रों को ज्ञानार्जन का सौभाग्य मिलता रहे। जैसा लेखिका कहती हैं, “जब तलवारों ने रक्त से अपनी प्यास बुझाई और अकाल ने भूमि को तबाह कर दिया, तब भी भारतीय अपनी प्रज्ञा पर टिके रहे कि ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है।” लेखिका ने वाचिक इतिहास, स्थानीय विद्या, यात्रा वृतांत, उत्तरजीवी साहित्य, शिलालेख, संरक्षित पांडुलिपियों और विद्वानों व जनसाधारण के जीवन वृत्तान्त से जानकारी एकत्र की है। ऐतिहासिक रूप से, यह पुस्तक प्राचीन भारत की परंपराओं से लेकर इसकी विरासत के जानबूझकर विनाश करने तक के एक वृहत् काल को अंकित करती है। यह विद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षा की वर्तमान संरचना में प्राचीन शिक्षण प्रणालियों के सबसे प्रासंगिक पहलुओं को सम्मिलित करने के लिए आज उठाए जा सकने वाले कदमों की रूपरेखा से भी अवगत कराती है।
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Description
यूरोपीय विश्वविद्यालयों की स्थापना से बहुत पहले भारत में ज्ञानार्जन के बहु-विषयक केंद्र थे जिन्होंने विश्व भर में ज्ञान क्रांति को बढ़ावा दिया। यह पुस्तक भारत की महान शैक्षिक विरासत को कालक्रमानुसार दर्शाने की आवश्यकता को पूरा करती है। यह पुस्तक उस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का वर्णन करती है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि गुरुओं और आचार्यों द्वारा पीढ़ियों तक छात्रों को ज्ञानार्जन का सौभाग्य मिलता रहे। जैसा लेखिका कहती हैं, “जब तलवारों ने रक्त से अपनी प्यास बुझाई और अकाल ने भूमि को तबाह कर दिया, तब भी भारतीय अपनी प्रज्ञा पर टिके रहे कि ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है।” लेखिका ने वाचिक इतिहास, स्थानीय विद्या, यात्रा वृतांत, उत्तरजीवी साहित्य, शिलालेख, संरक्षित पांडुलिपियों और विद्वानों व जनसाधारण के जीवन वृत्तान्त से जानकारी एकत्र की है। ऐतिहासिक रूप से, यह पुस्तक प्राचीन भारत की परंपराओं से लेकर इसकी विरासत के जानबूझकर विनाश करने तक के एक वृहत् काल को अंकित करती है। यह विद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षा की वर्तमान संरचना में प्राचीन शिक्षण प्रणालियों के सबसे प्रासंगिक पहलुओं को सम्मिलित करने के लिए आज उठाए जा सकने वाले कदमों की रूपरेखा से भी अवगत कराती है।
About Author
सहना सिंह, लेखिका व समीक्षक हैं जो इथका, न्यू यॉर्क में रहती हैं। आप प्रशिक्षण से पर्यावरण अभियंता हैं जो जल प्रबंधन, पर्यावरण व भारतीय इतिहास आदि विषयों पर लिखती हैं। आप इतिहास, विरासत, शिक्षा, संस्कारों की पुनर्स्थापना और हिंदू शरणार्थिaयों की सहायता करने से संबंधित कई गैर-लाभकारी संगठनों की बोर्ड सदस्य हैं। आप यात्राएं करने एवं विभिन्न समाजों, सभ्यताओं और विधाओं में आपसी संबंधों के आविष्कार में बेहद रुचि रखती हैं।
नेहा श्रीवास्तव, लखनऊ में पली-बढ़ी अभियंता, लेखिका और समाज सेविका हैं जो न्यू यॉर्क, अमेरिका में रहती हैं। आप शक्तित्व फाउंडेशन की संस्थापिका व अध्यक्षा हैं और हिंदू सभ्यता से सम्बंधित विषयों से जुड़ी हैं।
सत्यम बिहार के जमुई प्रांत के निवासी हैं। प्रशिक्षण से यांत्रिक अभियंता होने के साथ साथ वे आर्ट ऑफ़ लिविंग की गतिविधियों के आयोजन से जुड़े हुए हैं।
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