Bhartiya Gyan Mimansa
Publisher:
Motilal Banarsidass Publishers
| Author:
Manju Kumari
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Category: Hindi
Page Extent:
186
ज्ञान मीमांसा दर्शन का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि किसी भी दार्शनिक मत या सिद्धांत का बल मुख्य रूप से उस ज्ञान मीमांसा पर निर्भर करता है जिस पर वह दार्शनिक मत या सिद्धांत आधारित होता है। मीमांसा का अर्थ होता है किसी समस्या वा विचारणीय विषय का युक्तियों की समीक्षा द्वारा निर्णय। अतः ज्ञान मीमांसा का अर्थ हो जाता है ज्ञान की समस्या का युक्तियों की समीक्षा द्वारा निर्णय करना। प्राच्य और पाश्चात्य दोनों ही दर्शनों में ज्ञान मीमांसीय विवेचनों का बाहुल्य देखा जाता है। जहां तक प्राचीन भारतीय दर्शन का संबंध है, प्रायः हर दार्शनिक सम्प्रदाय की अपनी-अपनी ज्ञान मीमांसा है। कुछ बातों को लेकर उनमें साम्य है तथा कुछ बातों को लेकर भेद है। न्याय एवं वेदांत दर्शन की ज्ञान भीमांसा काफी वृहत है इसलिए इन दोनों दर्शनों को ज्ञान मीमांसा ने भारतीय दर्शन की प्रायः अन्य सभी ज्ञाव भीमामा को प्रभावित किया है।
पाश्चात्य दार्शनिक माधारणतः ज्ञान के दो ही साधन मानते हैं प्रत्यक्ष एवं अनुमान। परन्तु भारतीय दर्शन में इस विषय पर विभिन्न प्रकार के विचार सामने आते हैं। चावांक प्रत्यक्ष की हो ज्ञान का एक मात्र सही माधन मानते हैं। बौद्ध एवं वैशेषिक दो साधन मानते हैं प्रत्यक्ष एवं अनुमान। सांख्य एवं योग दर्शन प्रत्यक्ष एवं अनुमान में एक और साधन शब्द को जोड़ते हैं। न्याय दर्शन वार साधन को मानता है-प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान एवं शब्द। प्रभाकर मीमांसक पाँच साधन को मानते हैं प्रत्यक्ष अनुमान उपमान, शब्द एवं अर्थापत्ति। भट्ट मीमांसक एवं अद्वैत वेदान्ती प्रकार के प्रमा मानते हैं उपमान, शब्द जधापत्ति एवं अनुपलब्धि। प्रत्यक्ष, अनुमान,
भारतीय ज्ञान-मीमांसा में अप्रमा की भी बर्चा होती है। प्रमा यथार्थ ज्ञान है जबकि अपमा अयथार्थ ज्ञान। अप्रमा के चार भेद हैं स्मृति मंशय, भ्रम तथा तर्क। प्रस्तुत पुस्तक में ज्ञान में संबंधित समस्त बातों का उल्लेख किया गया है। मसलन जान क्या है, ज्ञान की परिभाषा जान का मवरूप प्रमा अप्रमा ज्ञान के स्रोत, ज्ञान की प्रामाणिकता स्वतः प्रामाण्यवाद, परतः प्रामाण्यवाद तथा श्रम सिद्धांत आरि
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ज्ञान मीमांसा दर्शन का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि किसी भी दार्शनिक मत या सिद्धांत का बल मुख्य रूप से उस ज्ञान मीमांसा पर निर्भर करता है जिस पर वह दार्शनिक मत या सिद्धांत आधारित होता है। मीमांसा का अर्थ होता है किसी समस्या वा विचारणीय विषय का युक्तियों की समीक्षा द्वारा निर्णय। अतः ज्ञान मीमांसा का अर्थ हो जाता है ज्ञान की समस्या का युक्तियों की समीक्षा द्वारा निर्णय करना। प्राच्य और पाश्चात्य दोनों ही दर्शनों में ज्ञान मीमांसीय विवेचनों का बाहुल्य देखा जाता है। जहां तक प्राचीन भारतीय दर्शन का संबंध है, प्रायः हर दार्शनिक सम्प्रदाय की अपनी-अपनी ज्ञान मीमांसा है। कुछ बातों को लेकर उनमें साम्य है तथा कुछ बातों को लेकर भेद है। न्याय एवं वेदांत दर्शन की ज्ञान भीमांसा काफी वृहत है इसलिए इन दोनों दर्शनों को ज्ञान मीमांसा ने भारतीय दर्शन की प्रायः अन्य सभी ज्ञाव भीमामा को प्रभावित किया है।
पाश्चात्य दार्शनिक माधारणतः ज्ञान के दो ही साधन मानते हैं प्रत्यक्ष एवं अनुमान। परन्तु भारतीय दर्शन में इस विषय पर विभिन्न प्रकार के विचार सामने आते हैं। चावांक प्रत्यक्ष की हो ज्ञान का एक मात्र सही माधन मानते हैं। बौद्ध एवं वैशेषिक दो साधन मानते हैं प्रत्यक्ष एवं अनुमान। सांख्य एवं योग दर्शन प्रत्यक्ष एवं अनुमान में एक और साधन शब्द को जोड़ते हैं। न्याय दर्शन वार साधन को मानता है-प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान एवं शब्द। प्रभाकर मीमांसक पाँच साधन को मानते हैं प्रत्यक्ष अनुमान उपमान, शब्द एवं अर्थापत्ति। भट्ट मीमांसक एवं अद्वैत वेदान्ती प्रकार के प्रमा मानते हैं उपमान, शब्द जधापत्ति एवं अनुपलब्धि। प्रत्यक्ष, अनुमान,
भारतीय ज्ञान-मीमांसा में अप्रमा की भी बर्चा होती है। प्रमा यथार्थ ज्ञान है जबकि अपमा अयथार्थ ज्ञान। अप्रमा के चार भेद हैं स्मृति मंशय, भ्रम तथा तर्क। प्रस्तुत पुस्तक में ज्ञान में संबंधित समस्त बातों का उल्लेख किया गया है। मसलन जान क्या है, ज्ञान की परिभाषा जान का मवरूप प्रमा अप्रमा ज्ञान के स्रोत, ज्ञान की प्रामाणिकता स्वतः प्रामाण्यवाद, परतः प्रामाण्यवाद तथा श्रम सिद्धांत आरि
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