Do Chhoro Ke Beech

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Monika Gajendragadkar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

263

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Book Type

Page Extent:
184

मोनिका तभी कलम चलाती हैं, जब कोई घटना या पात्र उन्हें बेचैनी की सीमा तक परेशान कर देता है। उनके लिए कहानी महज शब्दों की नुमाइश या आतिशबाजी नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों का यथार्थ साक्षात्कार होती है। स्त्री-पुरुष के आपसी अंतर्संबंधों की बारीकियाँ एवं विक्षिप्तता, उनका निपट अकेलापन, उससे पनपनेवाली मानसिक विकृतियाँ, उन्हें इस स्थिति तक पहुँचाने वाला सामाजिक तथा व्यवस्था का ढाँचा, धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरवादी भूमिका, मूलतत्त्ववाद तथा उनके आनुषंगिक खतरनाक विघटनकारी तत्त्व, धर्म और श्रद्धा का स्वरूप, प्रत्यक्ष जिंदगी जीने के लिए उनकी प्रासंगिकता एवं उपादेयता, कला और कलाकार की प्रतिबद्धता आदि अन्यान्य जीवन मूल्यों की कशमकश का सूक्ष्म, बेबाक, वस्तुनिष्ठ तथा निष्पक्ष चित्रण उनकी कहानियों में पाया जाता है। मोनिका की कहानियाँ पाठकों के दिमाग को झकझोरती हैं और उन्हें अंतर्मुख भी बना देती हैं। उनकी कहानियाँ समाधान पेश करने के बजाय प्रश्न उपस्थित करती हैं तथा इनसान की मजबूरी, असहायता एवं निर्णयहीनता की वजह से तबाही के कगार की सीमा तक पहुँचे हालातों से पाठकों को रूबरू कराती हैं। किसी भी समस्या की ओर तटस्थता से देखते हुए उसके विभिन्न पहलुओं को परत-दर-परत उजागर करती हैं। मोनिका की कहानियाँ इसी मायने में किसी भी अन्य भाषा की समसामयिक कहानियों से अलग हटकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाती हैं।.

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Description

मोनिका तभी कलम चलाती हैं, जब कोई घटना या पात्र उन्हें बेचैनी की सीमा तक परेशान कर देता है। उनके लिए कहानी महज शब्दों की नुमाइश या आतिशबाजी नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों का यथार्थ साक्षात्कार होती है। स्त्री-पुरुष के आपसी अंतर्संबंधों की बारीकियाँ एवं विक्षिप्तता, उनका निपट अकेलापन, उससे पनपनेवाली मानसिक विकृतियाँ, उन्हें इस स्थिति तक पहुँचाने वाला सामाजिक तथा व्यवस्था का ढाँचा, धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरवादी भूमिका, मूलतत्त्ववाद तथा उनके आनुषंगिक खतरनाक विघटनकारी तत्त्व, धर्म और श्रद्धा का स्वरूप, प्रत्यक्ष जिंदगी जीने के लिए उनकी प्रासंगिकता एवं उपादेयता, कला और कलाकार की प्रतिबद्धता आदि अन्यान्य जीवन मूल्यों की कशमकश का सूक्ष्म, बेबाक, वस्तुनिष्ठ तथा निष्पक्ष चित्रण उनकी कहानियों में पाया जाता है। मोनिका की कहानियाँ पाठकों के दिमाग को झकझोरती हैं और उन्हें अंतर्मुख भी बना देती हैं। उनकी कहानियाँ समाधान पेश करने के बजाय प्रश्न उपस्थित करती हैं तथा इनसान की मजबूरी, असहायता एवं निर्णयहीनता की वजह से तबाही के कगार की सीमा तक पहुँचे हालातों से पाठकों को रूबरू कराती हैं। किसी भी समस्या की ओर तटस्थता से देखते हुए उसके विभिन्न पहलुओं को परत-दर-परत उजागर करती हैं। मोनिका की कहानियाँ इसी मायने में किसी भी अन्य भाषा की समसामयिक कहानियों से अलग हटकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाती हैं।.

About Author

मौज प्रकाशन गृह तथा ‘मौज दिवाळी’ वार्षिकांक की संपादिका। पहली पुस्तक ‘भूप’ 2004 में प्रकाशित। इसके अलावा दो अन्य कहानी-संग्रह एवं एक उपन्यास प्रकाशित। महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार, श्री पुरस्कार, दमानी पुरस्कार तथा अन्य कई सम्मान प्राप्त। कहानियों का अंग्रेजी, गुजराती, कन्नड़ और कोंकणी में अनुवाद हुआ है। प्रकाश भातंबे्रकर (19 मई, 1947) मराठी-हिंदी-मराठी अनुवादक। विगत चार दशकों से अनुवाद कार्य से संबद्ध। पचास से अधिक पुस्तकों, शतकोत्तर कहानियों तथा उतनी ही कविताओं का हिंदी में तथा पाँच पुस्तकों, कुछेक कहानियों और अनेक कविताओं का हिंदी से मराठी में अनुवाद। केंद्र सरकार, भारतीय अनुवाद परिषद्-दिल्ली, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादेमी सहित अन्य कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

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