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Guru Nanaks Discourse with the Nath Yogis
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Gujarat Gatha Box Set (PB)
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Jo Meri Nas-Nas Mein Hai
Publisher:
PRABHAT PRAKASHAN
| Author:
Manoj ‘Muntashir’ Shukla
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹400 ₹200
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In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
Category: Hindi
Page Extent:
272
1999 मुलुंड, मुंबई का एक इलाका; रात के लगभग 11 बजे कासमय ! मेन रोड से लगी हुई कुछ खोलियाँ;उनमें से एक का दरवाजा तेज आवाज के साथखुलता है और VIP का एक फटा-पुराना बैगबाहर फेंक दिया जाता है । साथ ही एक महिलाके चीखने की आवाज आती है, ‘ जेब में दोकौड़ी नहीं और बातें बड़ी -बड़ी, कहीं और जाके भीख माँग।’ हवा में फेंका हुआ बैग खुलजाता है।
‘एक डायरी के कुछ पन्ने, एक फाइल मेंरखे हुए कुछ ए-4 साइज के कागज फड़फड़ातेहुए सड़क पर चारों ओर बिखर जाते हैं ।
23 साल का एक लड़का खोली के उसीखुले हुए दरवाजे से दौड़ता हुआ बाहर आता हैऔर बदहवास हवा में उड़ते हुए पन्ने समेटनेलगता है । आधी रात होने को है, लेकिन सड़कपर ट्रैफिक अभी कम नहीं हुआ। आती-जातीगाड़ियों से बेपरवाह वह लड़का रोता जा रहा हैऔर एक-एक पन्ने के पीछे भागता जा रहा है।ब्रेक मारती हुई गाड़ियों से मुँह निकालकर लोगगालियाँ बकते हैं, ‘ अबे, मरेगा कया ।’ पता नहींयह तमाशा कितनी देर चला, लेकिन लड़के नेसारे पन्ने समेट लिये और हवा ने सारे आँसूसुखा दिए । समेटे हुए वही पन्ने और सूखे हुएआँसू किताब बनकर आज आपके हाथों मेंहैं–सँभाल लीजिए ।
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Description
1999 मुलुंड, मुंबई का एक इलाका; रात के लगभग 11 बजे कासमय ! मेन रोड से लगी हुई कुछ खोलियाँ;उनमें से एक का दरवाजा तेज आवाज के साथखुलता है और VIP का एक फटा-पुराना बैगबाहर फेंक दिया जाता है । साथ ही एक महिलाके चीखने की आवाज आती है, ‘ जेब में दोकौड़ी नहीं और बातें बड़ी -बड़ी, कहीं और जाके भीख माँग।’ हवा में फेंका हुआ बैग खुलजाता है।
‘एक डायरी के कुछ पन्ने, एक फाइल मेंरखे हुए कुछ ए-4 साइज के कागज फड़फड़ातेहुए सड़क पर चारों ओर बिखर जाते हैं ।
23 साल का एक लड़का खोली के उसीखुले हुए दरवाजे से दौड़ता हुआ बाहर आता हैऔर बदहवास हवा में उड़ते हुए पन्ने समेटनेलगता है । आधी रात होने को है, लेकिन सड़कपर ट्रैफिक अभी कम नहीं हुआ। आती-जातीगाड़ियों से बेपरवाह वह लड़का रोता जा रहा हैऔर एक-एक पन्ने के पीछे भागता जा रहा है।ब्रेक मारती हुई गाड़ियों से मुँह निकालकर लोगगालियाँ बकते हैं, ‘ अबे, मरेगा कया ।’ पता नहींयह तमाशा कितनी देर चला, लेकिन लड़के नेसारे पन्ने समेट लिये और हवा ने सारे आँसूसुखा दिए । समेटे हुए वही पन्ने और सूखे हुएआँसू किताब बनकर आज आपके हाथों मेंहैं–सँभाल लीजिए ।
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