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लेकिन उदास है पृथ्वी | LEKIN UDAS HAI PRITHAVI
Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
MADAN KASHYAP
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹112 ₹111
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In stock
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3-5 Days
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SKU:
SKU
9788194008705
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
120
यह कविता संग्रह वैशाली की माटी की महक में तो सनी हुई है ही, कवि ने इसे अत्यन्त कलात्मक रूप भी प्रदान किया है। उसकी ‘गनीमत है’—जैसी कविताएँ इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। उनका मानसिक क्षितिज अपने साथ लिखने वाले कवियों की तुलना में कितना विस्तृत है, यह उनकी ‘पृथ्वी दिवस, 1991’ जैसी कविताओं से जाना जा सकता है। एक खास बात यह कि मदन कश्यप के पास राजनीति से लेकर विज्ञान तक की गहरी जानकारी है, जिसका वे अपनी कविताओं में बहुत ही सृजनात्मक उपयोग करते हैं। इसका प्रमाण उनकी ‘तिलचट्टे’ जैसी सशक्त कविताओं में मिलता है।
नौवाँ दशक कविता की वापसी का दशक है। ऐसा कहना न केवल इस दृष्टि से सार्थक है कि इसमें कविता फिर साहित्य के केन्द्र में स्थापित हो गयी, बल्कि इस दृष्टि से भी कि इसमें गहरी सामाजिक प्रतिबद्धता वाली कविता अपने निथरे रूप में सामने आयी और पूरे परिदृश्य पर छा गयी। मदन कश्यप का संग्रह किंचित विलम्ब से निकल रहा है, वह भी मित्रों की प्रेरणा और दबाव से, लेकिन उनकी कविताएँ उक्त निथरी हुई कविता का बहुत बढ़िया उदाहरण हैं। इन कविताओं की विशिष्टता यह है कि ये वैशाली की माटी की महक में तो सनी हुई हैं ही, कवि ने इन्हें अत्यन्त कलात्मक रूप भी प्रदान किया है। उसकी ‘गनीमत है’-जैसी कविताएँ इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। उसका मानसिक क्षितिज अपने साथ लिखने वाले कवियों की तुलना में कितना विस्तृत है, यह उसकी ‘पृथ्वी दिवस, 1991’ जैसी कविताओं से जाना जा सकता है। एक खास बात यह कि मदन कश्यप के पास राजनीति से लेकर विज्ञान तक की गहरी जानकारी है, जिसका वे अपनी कविताओं में बहुत ही सृजनात्मक उपयोग करते हैं। इसका प्रमाण उनकी ‘तिलचट्टे’ जैसी सशक्त कविताओं में मिलता है। लेकिन कविता क्या सोद्देश्य सृष्टि ही है? मदन कश्यप ने प्रतिबद्धता को संकीर्ण अर्थ में नहीं लिया, वरना वे न तो ‘चिड़िया का क्या’ जैसी नाजुक कविता लिख पाते, न ही ‘किराये के घर में’ जैसी ‘निरुद्देश्य’ कविता। तात्पर्य यह कि उनकी कविताओं में वह नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ भी मिलती है, जो इनकी अनुभूति को नया सौन्दर्यात्मक आयाम प्रदान करके उन्हें समृद्ध करती है। बिना इस नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ के प्रतिबद्ध कविता भी पूरी तरह सार्थक नहीं हो सकती है। कुल मिलाकर मदन कश्यप का यह संग्रह समकालीन हिन्दी कविता के ‘बसन्तागमन’ की पूरी झलक देता है, जिसमें ‘पलाश के जंगल से दहकते आसमान में/ अमलतास के गुच्छे-सा खिलता है सूरज!’
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Description
यह कविता संग्रह वैशाली की माटी की महक में तो सनी हुई है ही, कवि ने इसे अत्यन्त कलात्मक रूप भी प्रदान किया है। उसकी ‘गनीमत है’—जैसी कविताएँ इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। उनका मानसिक क्षितिज अपने साथ लिखने वाले कवियों की तुलना में कितना विस्तृत है, यह उनकी ‘पृथ्वी दिवस, 1991’ जैसी कविताओं से जाना जा सकता है। एक खास बात यह कि मदन कश्यप के पास राजनीति से लेकर विज्ञान तक की गहरी जानकारी है, जिसका वे अपनी कविताओं में बहुत ही सृजनात्मक उपयोग करते हैं। इसका प्रमाण उनकी ‘तिलचट्टे’ जैसी सशक्त कविताओं में मिलता है।
नौवाँ दशक कविता की वापसी का दशक है। ऐसा कहना न केवल इस दृष्टि से सार्थक है कि इसमें कविता फिर साहित्य के केन्द्र में स्थापित हो गयी, बल्कि इस दृष्टि से भी कि इसमें गहरी सामाजिक प्रतिबद्धता वाली कविता अपने निथरे रूप में सामने आयी और पूरे परिदृश्य पर छा गयी। मदन कश्यप का संग्रह किंचित विलम्ब से निकल रहा है, वह भी मित्रों की प्रेरणा और दबाव से, लेकिन उनकी कविताएँ उक्त निथरी हुई कविता का बहुत बढ़िया उदाहरण हैं। इन कविताओं की विशिष्टता यह है कि ये वैशाली की माटी की महक में तो सनी हुई हैं ही, कवि ने इन्हें अत्यन्त कलात्मक रूप भी प्रदान किया है। उसकी ‘गनीमत है’-जैसी कविताएँ इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। उसका मानसिक क्षितिज अपने साथ लिखने वाले कवियों की तुलना में कितना विस्तृत है, यह उसकी ‘पृथ्वी दिवस, 1991’ जैसी कविताओं से जाना जा सकता है। एक खास बात यह कि मदन कश्यप के पास राजनीति से लेकर विज्ञान तक की गहरी जानकारी है, जिसका वे अपनी कविताओं में बहुत ही सृजनात्मक उपयोग करते हैं। इसका प्रमाण उनकी ‘तिलचट्टे’ जैसी सशक्त कविताओं में मिलता है। लेकिन कविता क्या सोद्देश्य सृष्टि ही है? मदन कश्यप ने प्रतिबद्धता को संकीर्ण अर्थ में नहीं लिया, वरना वे न तो ‘चिड़िया का क्या’ जैसी नाजुक कविता लिख पाते, न ही ‘किराये के घर में’ जैसी ‘निरुद्देश्य’ कविता। तात्पर्य यह कि उनकी कविताओं में वह नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ भी मिलती है, जो इनकी अनुभूति को नया सौन्दर्यात्मक आयाम प्रदान करके उन्हें समृद्ध करती है। बिना इस नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ के प्रतिबद्ध कविता भी पूरी तरह सार्थक नहीं हो सकती है। कुल मिलाकर मदन कश्यप का यह संग्रह समकालीन हिन्दी कविता के ‘बसन्तागमन’ की पूरी झलक देता है, जिसमें ‘पलाश के जंगल से दहकते आसमान में/ अमलतास के गुच्छे-सा खिलता है सूरज!’
About Author
वरिष्ठ कवि और पत्रकार। अब तक छ: कविता-संग्रह–’लेकिन उदास है पृथ्वी’ (1992, 2019), ‘नीम रोशनी में’ (2000), ‘दूर तक चुप्पी’ (2014, 2020), ‘अपना ही देश’, कुरुज (2016) और ‘पनसोखा है इन्द्रधनुष’ (2019); आलेखों के तीन संकलन-‘मतभेद’ (2002), ‘लहलहान लोकतंत्र’ (2006) और ‘राष्ट्रवाद का संकट’ (2014) और सम्पादित पुस्तक ‘सेतु विचार : माओ त्सेतुङ’ प्रकाशित। चुनी हुई कविताओं का एक संग्रह ‘कवि ने कहा’ शृंखला में प्रकाशित। कविता के लिए प्राप्त पुरस्कारों में शमशेर सम्मान, केदार सम्मान, नागार्जुन पुरस्कार और बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान उल्लेखनीय। कुछ कविताओं का अंग्रेजी और कई अन्य भाषाओं में अनुवाद। हिन्दीतर भाषाओं में प्रकाशित समकालीन हिन्दी कविता के संकलनों और पत्रिकाओं के हिन्दी केन्द्रित अंकों में कविताएँ संकलित और प्रकाशित। दूरदर्शन, आकाशवाणी, साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, हिन्दी अकादमी आदि के आयोजनों में व्याख्यान और काव्यपाठ। देश के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित संगोष्ठियों में भागीदारी। विभिन्न शहरों में एकल काव्यपाठ।
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