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Indira Files: A Critical Look At The Controversial Side Of Indira Gandhi
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Scholastic (Set of 3 Books) : INKHEART | INKSPELL | INKDEATH
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Manav Kaul (Set Of 8 Books) :- Rooh | Tumhare Bare Mein | Prem Kabootar | Shirt Ka Tisra Button | Thik Tumhare Pichhe | Tooti Hui Bhikhari Hui | Patjhad | Chalta Phirta Preat
Publisher:
Hind Yugm
| Author:
Manav Kaul
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set Paperback
₹1,992 ₹1,454
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In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Availiblity | |
---|---|
Book Type |
Page Extent:
1632
- रूह :- मैं जब इस किताब को लिखने, अपनी पूरी नासमझी के साथ कश्मीर पहुँचा तो मुझे वहाँ सिर्फ़ सूखा पथरीला मैदान नज़र आया। जहाँ किसी भी तरह का लेखन संभव नहीं था। पर उन ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए मैंने जिस भी पत्थर को पलटाया उसके नीचे मुझे जीवन दिखा, नमी और प्रेम। मैं कहीं भी बचकर नहीं चला हूँ। जो जैसा है में, जैसा जीवन मैं देखना चाहता हूँ, उसे भी दर्ज करता चलता हूँ। कभी लगता है कि मैं पिता के बारे में लिखना चाहता था और कश्मीर लिख दिया और जब कश्मीर लिखने बैठा तो पिता दिखाई दिए। मेरी सारी यादें वहीं हैं जब हम चीज़ों को छू सकते थे। मैं छू सकता था, अपने पिता को, उनकी खुरदुरी दाढ़ी को, घर की खिड़की को, खिड़की से दिख रहे आसमान को, बुख़ारी को, काँगड़ी को। अब इस बदलती दुनिया में वो सारी पुरानी चीज़ें मेरे हाथों से छूटती जा रही हैं। उन छूटती चीज़ों के साथ-साथ मुझे लगता है मैं ख़ुद को भी खोता चला जा रहा हूँ। आजकल जो भी नई चीज़ें छूता हूँ वो अपने परायेपन की धूल के साथ आती हैं। मैं जितनी भी धूल झाड़ूँ, मुझे अपनापन उन्हीं पुरानी चीज़ों में नज़र आता है। लेकिन जब उनके बारे में लिखने बैठता हूँ तो यक़ीन नहीं होता कि वो मेरे इसी जनम का हिस्सा थीं।
- तुम्हारे बारे में :- मैं उस आदमी से दूर भागना चाह रहा था जो लिखता था। बहुत सोच-विचार के बाद एक दिन मैंने उस आदमी को विदा कहा जिसकी आवाज़ मुझे ख़ालीपन में ख़ाली नहीं रहने दे रही थी। मैंने लिखना बंद कर दिया। क़रीब तीन साल कुछ नहीं लिखा। इस बीच यात्राओं में वह आदमी कभी-कभी मेरे बग़ल में आकर बैठ जाता। मैं उसे अनदेखा करके वहाँ से चल देता। कभी लंबी यात्राओं में उसकी आहट मुझे आती रही, पर मैं ज़िद में था कि मैं इस झूठ से दूर रहना चाहता हूँ। इस बीच लगातार मेरे पास फ़ोन था, जिससे मैं यात्राओं में तस्वीरें खींचता रहा। फिर किसी बच्चे की तरह यहाँ-वहाँ देखकर कि कहीं वह आदमी आस-पास तो नहीं है? मैं अपने फ़ोन में नोट्स खोलता और ठीक उस वक़्त का जो भी महसूस हो रहा है, जिसे मैं छू भी सकता हूँ, दर्ज कर लेता। इन दस्तावेज़ों को उस वक़्त खींची तस्वीरों के साथ इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर देता। मानो अंतरिक्ष में संदेश छोड़ा हो। शायद मैं इस तरह का लिखना बहुत समय से तलाश रहा था, जो न कविता है, न कहानी है, वह बस उस वक़्त की सघनता का एक चित्र है जिसमें पतंग बिना धागे के उड़ रही है। इस किताब में यात्राएँ हैं, नाटकों को बनाने का मुक्त अकेलापन है, कहानियाँ हैं, मौन में बातें हैं, इंस्टाग्राम की लिखाई है और लिखने की अलग-अलग अवस्थाएँ हैं। एक तरीक़े का बाँध था, जिसका पानी कई सालों से जमा हो रहा था। इस किताब में मैंने वह बाँध तोड़ दिया है।
- प्रेम कबूतर :- मैं नास्तिक हूँ। कठिन वक़्त में यह मेरी कहानियाँ ही थी जिन्होंने मुझे सहारा दिया है। मैं बचा रह गया अपने लिखने के कारण। मैं हर बार तेज़ धूप में भागकर इस बरगद की छाँव में अपना आसरा पा लेता। इसे भगोड़ापन भी कह सकते हैं, पर यह एक अजीब दुनिया है जो मुझे बेहद आकर्षित करती रही है। इस दुनिया में मुझे अधिकतर हारे हुए पात्र बहुत आकर्षित करते रहे हैं। हारे हुए पात्रों के भीतर एक नाटकीय संसार छिपा हुआ होता जबकि जीत की कहानियाँ मुझे हमेशा बहुत उबा देने वाली लगती हैं। जब भी मैंने अपना कोई लिखा पूरा किया है उसकी मस्ती मेरी चाल में बहुत समय तक बनी रही है। अगर हम प्रेम पर बात करें तो मैंने उसे पाया अपने जीवन में है पर उसे समझा अपने लिखे में है।
- शर्ट का तिसरा बटन :- मैं अपने घर में थी जब मैंने ‘अपराध और दंड’ पढ़ी थी और घर छोड़ते ही मैंने ‘चित्रलेखा’ पढ़ना शुरू किया था। बहुत कोशिश के बाद भी मैं ‘अपराध और दंड’ को छोड़ नहीं पाई। मैंने उसे अपने बैग में रख लिया। बीच-बीच में ‘चित्रलेखा’ पढ़ते हुए मैं ‘अपराध और दंड’ के कुछ हिस्सों को टटोलने लगती। और तब कुछ अलग पढ़ने का मन करता, और लगता कि काश अगर चित्रलेखा एक ख़त रस्कोलनिकोव को लिख दे तो मैं इस वक़्त उस ख़त को पढ़ना चाहूँगी। मैं उस पुल पर देर तक टहलना चाहती थी जिससे ये दो अलग दुनिया जुड़ सकती थीं।
-
ठीक तुम्हारे पीछे :- मैंने अपने जीवन की पहली बर्फ इसी खिड़की से देखी थी। गहरे नीले आसमान में सफेद रूई समान बादलों का अर्थ खोजने में भी मैंने कई दोपहरें टकटकी बाँधे इस खिड़की पर बिताई हैं। कश्मीर, बरामुल्ला, ख़्वाजाबाग़ के इसी घर में मैं पैदा हुआ हूँ। यह घर बचपन में ही छूट गया था, पर इसकी गहरी याद अभी भी भीतर तरोताज़ा है। क़रीब सत्ताईस साल बाद मैं वापिस इस घर आया, घर जर्जर हाल में खंडहर हो चुका था, पर बहुत आश्चर्य हुआ दीवार में उस छेद को देखकर जिसमें मैं टॉफियाँ छुपाया करता था; वह बिलकुल वैसा-का-वैसा था।अपने फ़ोन से कुछ ही तस्वीरें मैं ले पाया था। उन्हीं में से एक खिड़की की तस्वीर इस कहानी संग्रह का कवर है|
-
टूटी हुई बिखरी हुई :- मुझे हमेशा से लगता रहा था कि जीवन में व्यस्त रहना सबसे मूर्खता का काम है। इस जीवन को मैं जितनी चालाकी से जी सकता था, जी रहा था। कम-से-कम काम करके ज़्यादा-से-ज़्यादा वक़्त ख़ाली रहना मेरे जीने का उद्देश्य था। मैं कुछ न करते वक़्त सबसे ज़्यादा सम पर रहता था। सुरक्षित जीवन की कल्पना में काम करते-करते एक दिन मैं मर नहीं जाना चाहता था। मैं किसी भी तरह की मक्कारी पर उतर सकता था अगर मुझे पता चले कि मेरे दिन बस काम की व्यस्तता में बीतते चले जा रहे हैं।
-
पतझड़ :- मैं बस ये कहना चाह रहा था कि अगर मैं किताब नहीं पढ़ता, अगर मैं इन दोनों जगहों पर नहीं जाता तो शायद मैं पिछली बार की तरह यूँ ही, पूरे म्यूज़ियम से टहलते हुए बाहर निकल आता। पहली बार उनके चित्रों के रंग मुझे अपनी तरफ़ खींच रहे थे, उनके ब्रश स्ट्रोक- अकेलापन, पीड़ा, प्रेम सारे कुछ से सने हुए थे। उनकी हर तस्वीर, तस्वीर बनाने की प्रक्रिया भी साथ लेकर चलती है। मैं उनकी पेंटिंग Weeping Nude के सामने जाने कितनी देर खड़ा रहा! मैं Munch के सारे रंगों को जानता था, वो मेरे जीवन के रंग थे, वो मेरे अकेलेपन, कमीनेपन के रंग थे, अगर कोई पूछे कि गहरी उदासी कैसी होती है तो मैं Munch की किसी पेंटिंग की तरफ़ ही इशारा करूँगा।
- चलता फिरता प्रेत :- बहुत वक़्त से सोच रहा था कि अपनी कहानियों में मृत्यु के इर्द-गिर्द का संसार बुनूँ। ख़त्म कितना हुआ है और कितना बचाकर रख पाया हूँ, इसका लेखा- जोखा कई साल खा चुका था। लिखना कभी पूरा नहीं होता… कुछ वक़्त बाद बस आपको मान लेना होता है कि यह घर अपनी सारी कहानियों के कमरे लिए पूरा है और उसे त्यागने का वक़्त आ चुका है। त्यागने के ठीक पहले, जब अंतिम बार आप उस घर को पलटकर देखते हैं तो वो मृत्यु के बजाय जीवन से भरा हुआ दिखता है। मृत्यु की तरफ़ बढता हुआ, उसके सामने समर्पित-सा और मृत्यु के बाद ख़ाली पड़े गलियारे की नमी-सा जीवन, जिसमें चलते-फिरते प्रेत-सा कोई टहलता हुआ दिखाई देने लगता है और आप पलट जाते हैं।
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Description
- रूह :- मैं जब इस किताब को लिखने, अपनी पूरी नासमझी के साथ कश्मीर पहुँचा तो मुझे वहाँ सिर्फ़ सूखा पथरीला मैदान नज़र आया। जहाँ किसी भी तरह का लेखन संभव नहीं था। पर उन ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए मैंने जिस भी पत्थर को पलटाया उसके नीचे मुझे जीवन दिखा, नमी और प्रेम। मैं कहीं भी बचकर नहीं चला हूँ। जो जैसा है में, जैसा जीवन मैं देखना चाहता हूँ, उसे भी दर्ज करता चलता हूँ। कभी लगता है कि मैं पिता के बारे में लिखना चाहता था और कश्मीर लिख दिया और जब कश्मीर लिखने बैठा तो पिता दिखाई दिए। मेरी सारी यादें वहीं हैं जब हम चीज़ों को छू सकते थे। मैं छू सकता था, अपने पिता को, उनकी खुरदुरी दाढ़ी को, घर की खिड़की को, खिड़की से दिख रहे आसमान को, बुख़ारी को, काँगड़ी को। अब इस बदलती दुनिया में वो सारी पुरानी चीज़ें मेरे हाथों से छूटती जा रही हैं। उन छूटती चीज़ों के साथ-साथ मुझे लगता है मैं ख़ुद को भी खोता चला जा रहा हूँ। आजकल जो भी नई चीज़ें छूता हूँ वो अपने परायेपन की धूल के साथ आती हैं। मैं जितनी भी धूल झाड़ूँ, मुझे अपनापन उन्हीं पुरानी चीज़ों में नज़र आता है। लेकिन जब उनके बारे में लिखने बैठता हूँ तो यक़ीन नहीं होता कि वो मेरे इसी जनम का हिस्सा थीं।
- तुम्हारे बारे में :- मैं उस आदमी से दूर भागना चाह रहा था जो लिखता था। बहुत सोच-विचार के बाद एक दिन मैंने उस आदमी को विदा कहा जिसकी आवाज़ मुझे ख़ालीपन में ख़ाली नहीं रहने दे रही थी। मैंने लिखना बंद कर दिया। क़रीब तीन साल कुछ नहीं लिखा। इस बीच यात्राओं में वह आदमी कभी-कभी मेरे बग़ल में आकर बैठ जाता। मैं उसे अनदेखा करके वहाँ से चल देता। कभी लंबी यात्राओं में उसकी आहट मुझे आती रही, पर मैं ज़िद में था कि मैं इस झूठ से दूर रहना चाहता हूँ। इस बीच लगातार मेरे पास फ़ोन था, जिससे मैं यात्राओं में तस्वीरें खींचता रहा। फिर किसी बच्चे की तरह यहाँ-वहाँ देखकर कि कहीं वह आदमी आस-पास तो नहीं है? मैं अपने फ़ोन में नोट्स खोलता और ठीक उस वक़्त का जो भी महसूस हो रहा है, जिसे मैं छू भी सकता हूँ, दर्ज कर लेता। इन दस्तावेज़ों को उस वक़्त खींची तस्वीरों के साथ इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर देता। मानो अंतरिक्ष में संदेश छोड़ा हो। शायद मैं इस तरह का लिखना बहुत समय से तलाश रहा था, जो न कविता है, न कहानी है, वह बस उस वक़्त की सघनता का एक चित्र है जिसमें पतंग बिना धागे के उड़ रही है। इस किताब में यात्राएँ हैं, नाटकों को बनाने का मुक्त अकेलापन है, कहानियाँ हैं, मौन में बातें हैं, इंस्टाग्राम की लिखाई है और लिखने की अलग-अलग अवस्थाएँ हैं। एक तरीक़े का बाँध था, जिसका पानी कई सालों से जमा हो रहा था। इस किताब में मैंने वह बाँध तोड़ दिया है।
- प्रेम कबूतर :- मैं नास्तिक हूँ। कठिन वक़्त में यह मेरी कहानियाँ ही थी जिन्होंने मुझे सहारा दिया है। मैं बचा रह गया अपने लिखने के कारण। मैं हर बार तेज़ धूप में भागकर इस बरगद की छाँव में अपना आसरा पा लेता। इसे भगोड़ापन भी कह सकते हैं, पर यह एक अजीब दुनिया है जो मुझे बेहद आकर्षित करती रही है। इस दुनिया में मुझे अधिकतर हारे हुए पात्र बहुत आकर्षित करते रहे हैं। हारे हुए पात्रों के भीतर एक नाटकीय संसार छिपा हुआ होता जबकि जीत की कहानियाँ मुझे हमेशा बहुत उबा देने वाली लगती हैं। जब भी मैंने अपना कोई लिखा पूरा किया है उसकी मस्ती मेरी चाल में बहुत समय तक बनी रही है। अगर हम प्रेम पर बात करें तो मैंने उसे पाया अपने जीवन में है पर उसे समझा अपने लिखे में है।
- शर्ट का तिसरा बटन :- मैं अपने घर में थी जब मैंने ‘अपराध और दंड’ पढ़ी थी और घर छोड़ते ही मैंने ‘चित्रलेखा’ पढ़ना शुरू किया था। बहुत कोशिश के बाद भी मैं ‘अपराध और दंड’ को छोड़ नहीं पाई। मैंने उसे अपने बैग में रख लिया। बीच-बीच में ‘चित्रलेखा’ पढ़ते हुए मैं ‘अपराध और दंड’ के कुछ हिस्सों को टटोलने लगती। और तब कुछ अलग पढ़ने का मन करता, और लगता कि काश अगर चित्रलेखा एक ख़त रस्कोलनिकोव को लिख दे तो मैं इस वक़्त उस ख़त को पढ़ना चाहूँगी। मैं उस पुल पर देर तक टहलना चाहती थी जिससे ये दो अलग दुनिया जुड़ सकती थीं।
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ठीक तुम्हारे पीछे :- मैंने अपने जीवन की पहली बर्फ इसी खिड़की से देखी थी। गहरे नीले आसमान में सफेद रूई समान बादलों का अर्थ खोजने में भी मैंने कई दोपहरें टकटकी बाँधे इस खिड़की पर बिताई हैं। कश्मीर, बरामुल्ला, ख़्वाजाबाग़ के इसी घर में मैं पैदा हुआ हूँ। यह घर बचपन में ही छूट गया था, पर इसकी गहरी याद अभी भी भीतर तरोताज़ा है। क़रीब सत्ताईस साल बाद मैं वापिस इस घर आया, घर जर्जर हाल में खंडहर हो चुका था, पर बहुत आश्चर्य हुआ दीवार में उस छेद को देखकर जिसमें मैं टॉफियाँ छुपाया करता था; वह बिलकुल वैसा-का-वैसा था।अपने फ़ोन से कुछ ही तस्वीरें मैं ले पाया था। उन्हीं में से एक खिड़की की तस्वीर इस कहानी संग्रह का कवर है|
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टूटी हुई बिखरी हुई :- मुझे हमेशा से लगता रहा था कि जीवन में व्यस्त रहना सबसे मूर्खता का काम है। इस जीवन को मैं जितनी चालाकी से जी सकता था, जी रहा था। कम-से-कम काम करके ज़्यादा-से-ज़्यादा वक़्त ख़ाली रहना मेरे जीने का उद्देश्य था। मैं कुछ न करते वक़्त सबसे ज़्यादा सम पर रहता था। सुरक्षित जीवन की कल्पना में काम करते-करते एक दिन मैं मर नहीं जाना चाहता था। मैं किसी भी तरह की मक्कारी पर उतर सकता था अगर मुझे पता चले कि मेरे दिन बस काम की व्यस्तता में बीतते चले जा रहे हैं।
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पतझड़ :- मैं बस ये कहना चाह रहा था कि अगर मैं किताब नहीं पढ़ता, अगर मैं इन दोनों जगहों पर नहीं जाता तो शायद मैं पिछली बार की तरह यूँ ही, पूरे म्यूज़ियम से टहलते हुए बाहर निकल आता। पहली बार उनके चित्रों के रंग मुझे अपनी तरफ़ खींच रहे थे, उनके ब्रश स्ट्रोक- अकेलापन, पीड़ा, प्रेम सारे कुछ से सने हुए थे। उनकी हर तस्वीर, तस्वीर बनाने की प्रक्रिया भी साथ लेकर चलती है। मैं उनकी पेंटिंग Weeping Nude के सामने जाने कितनी देर खड़ा रहा! मैं Munch के सारे रंगों को जानता था, वो मेरे जीवन के रंग थे, वो मेरे अकेलेपन, कमीनेपन के रंग थे, अगर कोई पूछे कि गहरी उदासी कैसी होती है तो मैं Munch की किसी पेंटिंग की तरफ़ ही इशारा करूँगा।
- चलता फिरता प्रेत :- बहुत वक़्त से सोच रहा था कि अपनी कहानियों में मृत्यु के इर्द-गिर्द का संसार बुनूँ। ख़त्म कितना हुआ है और कितना बचाकर रख पाया हूँ, इसका लेखा- जोखा कई साल खा चुका था। लिखना कभी पूरा नहीं होता… कुछ वक़्त बाद बस आपको मान लेना होता है कि यह घर अपनी सारी कहानियों के कमरे लिए पूरा है और उसे त्यागने का वक़्त आ चुका है। त्यागने के ठीक पहले, जब अंतिम बार आप उस घर को पलटकर देखते हैं तो वो मृत्यु के बजाय जीवन से भरा हुआ दिखता है। मृत्यु की तरफ़ बढता हुआ, उसके सामने समर्पित-सा और मृत्यु के बाद ख़ाली पड़े गलियारे की नमी-सा जीवन, जिसमें चलते-फिरते प्रेत-सा कोई टहलता हुआ दिखाई देने लगता है और आप पलट जाते हैं।
About Author
मानव कौल के लिए लेखन आनंद की यात्रा रहा है। मानव ने लिखने के समय में ख़ुद को सबसे ज़्यादा सुरक्षित महसूस किया है। इनके लेखन की शुरुआत लगभग 20 साल पहले हुई मगर बीते 6 सालों में इन्होंने बहुत सघन लेखन किया है। यह मानव की नौवीं किताब है, जोकि एक यात्रा-वृत्तांत है। इस किताब को एक अप्रवासी कश्मीरी के उसके निजी कश्मीर के अतीत और वर्तमान से बेहद निजी संवाद भी कह सकते हैं। इससे पहले मानव की आठ किताबें—‘ठीक तुम्हारे पीछे’, ‘प्रेम कबूतर’, ‘तुम्हारे बारे में’, ‘बहुत दूर, कितना दूर होता है’, ‘चलता-फिरता प्रेत’, ‘अंतिमा’, ‘कर्ता ने कर्म से’ और ‘शर्ट का तीसरा बटन’ प्रकाशित हैं
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