Pankhheen

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Smt. Kamla Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

375

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स्वतंत्रता आंदोलन के समय भारत की दशा और उस काल में भारतीय स्त्री की दशा की विभीषिका को इस उपन्यास के पृष्ठों में एक नया कलेवर दिया गया है। उस समय की नारी जब चौखट के बाहर की दुनिया से कम प्रभावित रहती थी, उस दौरान नारी जागरण और उसकी स्वप्निल दुनिया को यह उपन्यास निखारता है। यह उपन्यास करीब 60 साल पूर्व लिखा गया, जिसके कारण इसमें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान की गतिविधियों को सँजोते हुए उस काल की राजनीतिक, सामाजिक व्यवस्थाओं का व्यापक चित्रण मिलता है। आज की तरह से स्त्री स्वतंत्रता की पैरोकारी तो अधिक नहीं है, लेकिन लेखिका ने इस उपन्यास में सामाजिक चेतना के लिए जागरूकता लानेवाली नायिका की प्रबल इच्छाशक्ति को उभारा है। उपन्यास की नायिका जागरूकता की आँधी चलाते-चलाते कैसे अपने प्रेम के भटकाव का शिकार बन जाती है—इसे सहज समझा जा सकता है। इस उपन्यास में लेखिका ने उन तत्कालीन परिस्थितियों को भी उभारा है, जिसमें एक नारी के घर-गृहस्थी से लेकर उसके सपनों की ऊँची उड़ान का रोचक वर्णन है। नायिका के प्रेम का उच्च अध्याय इसमें समाहित होकर आगे आता है। ऐसे समय में नायिका का भटकाव और उसकी विवशता उपन्यास की रोचकता को बहुत आगे लेकर जाता है। ‘पंखहीन’ ममता और अपनत्व की स्नहच्छाया का बोध कराता है और भारतीय संस्कृति-समाज और सभ्यता से गहरे परिचय भी। पारिवारिक जीवन-मूल्यों और सामाजिकता से भरपूर पठनीय उपन्यास।.

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Description

स्वतंत्रता आंदोलन के समय भारत की दशा और उस काल में भारतीय स्त्री की दशा की विभीषिका को इस उपन्यास के पृष्ठों में एक नया कलेवर दिया गया है। उस समय की नारी जब चौखट के बाहर की दुनिया से कम प्रभावित रहती थी, उस दौरान नारी जागरण और उसकी स्वप्निल दुनिया को यह उपन्यास निखारता है। यह उपन्यास करीब 60 साल पूर्व लिखा गया, जिसके कारण इसमें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान की गतिविधियों को सँजोते हुए उस काल की राजनीतिक, सामाजिक व्यवस्थाओं का व्यापक चित्रण मिलता है। आज की तरह से स्त्री स्वतंत्रता की पैरोकारी तो अधिक नहीं है, लेकिन लेखिका ने इस उपन्यास में सामाजिक चेतना के लिए जागरूकता लानेवाली नायिका की प्रबल इच्छाशक्ति को उभारा है। उपन्यास की नायिका जागरूकता की आँधी चलाते-चलाते कैसे अपने प्रेम के भटकाव का शिकार बन जाती है—इसे सहज समझा जा सकता है। इस उपन्यास में लेखिका ने उन तत्कालीन परिस्थितियों को भी उभारा है, जिसमें एक नारी के घर-गृहस्थी से लेकर उसके सपनों की ऊँची उड़ान का रोचक वर्णन है। नायिका के प्रेम का उच्च अध्याय इसमें समाहित होकर आगे आता है। ऐसे समय में नायिका का भटकाव और उसकी विवशता उपन्यास की रोचकता को बहुत आगे लेकर जाता है। ‘पंखहीन’ ममता और अपनत्व की स्नहच्छाया का बोध कराता है और भारतीय संस्कृति-समाज और सभ्यता से गहरे परिचय भी। पारिवारिक जीवन-मूल्यों और सामाजिकता से भरपूर पठनीय उपन्यास।.

About Author

श्रीमती कमला मिश्र की यह इकलौती (प्राप्त) कृति है, जिसका लेखन लगभग 60 साल पहले किया गया था, परंतु किन्हीं कारणों से यह उपन्यास साकार रूप नहीं ले सका था। श्रीमती कमला मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में सन् 1906 में हुआ था। वे एक वैभव-संपन्न ब्राह्मण कुल में पैदा हुई थीं। उनका विवाह लखनऊ में श्री मणिशंकर मिश्र के साथ 17 वर्ष की उम्र में हुआ। श्रीमती कमला मिश्र के एक पुत्र एवं दो पुत्रियाँ थीं। वे हिंदी के साथ ही बांग्ला भाषा की भी जानकार थीं। उनकी शिक्षा-दीक्षा की बहुत सी जानकारियाँ उनके संसार से विदा होने के साथ ही लुप्त हो गईं।.

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