Paraye Hue Apane

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Jugdish ‘Teerthraj’ Aujayeb
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

188

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176

मैंने अब तक सौ से भी ज्यादा नाटक लिखे हैं। नाटक के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, निबंध भी लिखे परंतु छपवाने से दूर रहा। पुस्तक छपवाना कितना आसान काम है। पुस्तक छपवाने के पश्चात् पुस्तक विमोचन होता है। बडे़-बड़े लोगों से भेंट-मुलाकातें होती हैं। बधाइयाँ, मुफ्त में झूठी प्रशंसा, लेकिन उसके बाद लेखक हाथ सिर पर रखकर रोता है, पुस्तकें खरीददार को देखकर रोती हैं। कहती हैं, ‘अरे भाई! मुझे खरीदकर घर ले जाओ, पढ़ो, कुछ लाभ होगा।’ ईश्वर जाने आप खुश हैं या नाखुश! यदि आपको पढ़कर थोड़ी सी खुशी प्राप्त होती है तो मैं अपनी खुशी मानूँगा और यदि खुशी न मिली, आनंद प्राप्त न हुआ, फिर भी मुझे कुछ तसल्ली तो होगी कि कम-से-कम आप लोगों ने कुछ तो पढ़ा, मेरा काम सार्थक हुआ। मेरा काम, परिश्रम निरर्थक नहीं गया। प्रशंसा से मैं उतना खुश नहीं होता हूँ, जितना कि मैं अपनी निंदा से खुश होता हूँ। निंदा ही तो सफलता का प्रथम चरण है; जिसे हार स्वीकार हो, उसकी जीत निश्चित है। —भूमिका से.

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Description

मैंने अब तक सौ से भी ज्यादा नाटक लिखे हैं। नाटक के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, निबंध भी लिखे परंतु छपवाने से दूर रहा। पुस्तक छपवाना कितना आसान काम है। पुस्तक छपवाने के पश्चात् पुस्तक विमोचन होता है। बडे़-बड़े लोगों से भेंट-मुलाकातें होती हैं। बधाइयाँ, मुफ्त में झूठी प्रशंसा, लेकिन उसके बाद लेखक हाथ सिर पर रखकर रोता है, पुस्तकें खरीददार को देखकर रोती हैं। कहती हैं, ‘अरे भाई! मुझे खरीदकर घर ले जाओ, पढ़ो, कुछ लाभ होगा।’ ईश्वर जाने आप खुश हैं या नाखुश! यदि आपको पढ़कर थोड़ी सी खुशी प्राप्त होती है तो मैं अपनी खुशी मानूँगा और यदि खुशी न मिली, आनंद प्राप्त न हुआ, फिर भी मुझे कुछ तसल्ली तो होगी कि कम-से-कम आप लोगों ने कुछ तो पढ़ा, मेरा काम सार्थक हुआ। मेरा काम, परिश्रम निरर्थक नहीं गया। प्रशंसा से मैं उतना खुश नहीं होता हूँ, जितना कि मैं अपनी निंदा से खुश होता हूँ। निंदा ही तो सफलता का प्रथम चरण है; जिसे हार स्वीकार हो, उसकी जीत निश्चित है। —भूमिका से.

About Author

जगदीश ‘तीर्थराज’ ओजायेब का जन्म मॉरीशस देश के दक्षिण प्रांत सुरिनाम नामक गाँव में 8 फरवरी, 1947 को हुआ। उनका पालन-पोषण तथा प्राथमिक शिक्षा न्यूग्रोव नामक गाँव में हुई। वे एक गरीब और मजदूर के बेटे थे, सो वे भी बारह साल की आयु में खेतों में मजदूरी करने लगे। बीस साल की आयु तक उन्हें हिंदी अक्षर-शब्दों का कोई ज्ञान नहीं था। उसके बाद वे अंगे्रजी-फ्रेंच आदि के साथ-साथ हिंदी भी पढ़ने लगे। पच्चीस साल के होते-होते हिंदी अध्यापक भी बन गए। 1975 में उन्होंने ‘हिंदी विकास साहित्य संघ’ नामक संस्था की स्थापना की और मॉरीशस के दक्षिणी प्रांतों में हिंदी के ज्ञान-दान में लग गए, जो आज भी जारी है। हिंदी शिक्षण के अलावा संस्था द्वारा अनेक सामाजिक कार्यों, जैसे रक्त दान, स्कूलों में पुस्तकों का दान, मुफ्त चिकित्सा आदि में भी खूब योगदान होता है। वर्ष 1975 में ही उन्होंने अपना पहला नाटक लिखा और प्रस्तुत भी किया—‘अब क्या होगा’। अब तक उन्होंने सौ से भी ज्यादा नाटक, कहानियाँ, लेख, कविताएँ आदि लिखी हैं। उन्हीं में से कुछ नाटक इस संग्रह में संकलित हैं। कुछ नाटक शिक्षा मंत्रालय द्वारा लेखन प्रतियोगिता में पुरस्कृत हो चुके हैं और कुछ देश में मंचित भी हो चुके हैं।.

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