Parsi Samaj Ka Rochak Itihas

Publisher:
Manjul
| Author:
Coomi Kapoor
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback

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282

हमारे समाज में पारसियों की संख्या तेजी से घट रही है। पूरे भारत में अब इस समुदाय के लगभग 50,000 सदस्य ही बचे हैं। लेकिन आठवीं और दसवीं शताब्दी के बीच में मध्य एशिया से उनके यहां आने के बाद से, उनके द्वारा अपनाये गए इस देश में पारसियों का योगदान असाधारण रहा है। पिछली शताब्दी में भारत का इतिहास हर क्षेत्र में उनके योगदान से भरा हुआ है। परमाणु भौतिकी से रॉक एंड रोल तक, दादाभाई नौरोज़ी जैसे नामों से लेकर, दिनशॉ पेटिट, होमी भाभा, सैम मानेकशॉ, जमशेदजी टाटा, अर्देशिर गोदरेज, साइरस पूनावाला, ज़ुबिन मेहता और फारोख़ बलसारा (ऊर्फ़ फ्रेडी मर्करी) तक। पारसियों के इस आकर्षक, सुलभ, अंतरंग इतिहास में, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार कूमी कपूर, जो स्वयं एक पारसी हैं, नामों, कहानियों, उपलब्धियों के माध्यम से इस छोटे लेकिन असाधारण अल्पसंख्यक समुदाय की निरंतर सफ़लता का उल्लेख करती हैं। वे इन मुद्दों पर गहराई से चिंतन करती हैं कि भारत में पारसी होने का क्या अर्थ है और साथ ही कैसे उनका योगदान भारतीय होने का अभिन्न अंग बन गया। कपूर के हाथों में पारसियों की कहानी घटनाओं से भरा एक उत्तेजनापूर्ण रोमांच बन जाती है : चीन के साथ व्यापार पर हावी होने से लेकर बॉम्बे का पर्याय बनने तक, जो कि एक समय पर यकीनन, इसके पारसियों द्वारा परिभाषित शहर था; टाटा, मिस्त्री, गोदरेज़ और वाडिया की व्यावसायिक सफ़लता से लेकर एक पारसी द्वारा स्थापित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा कोविड-19 टीकों के निर्माण जैसे वर्तमान योगदान तक।

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Description

हमारे समाज में पारसियों की संख्या तेजी से घट रही है। पूरे भारत में अब इस समुदाय के लगभग 50,000 सदस्य ही बचे हैं। लेकिन आठवीं और दसवीं शताब्दी के बीच में मध्य एशिया से उनके यहां आने के बाद से, उनके द्वारा अपनाये गए इस देश में पारसियों का योगदान असाधारण रहा है। पिछली शताब्दी में भारत का इतिहास हर क्षेत्र में उनके योगदान से भरा हुआ है। परमाणु भौतिकी से रॉक एंड रोल तक, दादाभाई नौरोज़ी जैसे नामों से लेकर, दिनशॉ पेटिट, होमी भाभा, सैम मानेकशॉ, जमशेदजी टाटा, अर्देशिर गोदरेज, साइरस पूनावाला, ज़ुबिन मेहता और फारोख़ बलसारा (ऊर्फ़ फ्रेडी मर्करी) तक। पारसियों के इस आकर्षक, सुलभ, अंतरंग इतिहास में, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार कूमी कपूर, जो स्वयं एक पारसी हैं, नामों, कहानियों, उपलब्धियों के माध्यम से इस छोटे लेकिन असाधारण अल्पसंख्यक समुदाय की निरंतर सफ़लता का उल्लेख करती हैं। वे इन मुद्दों पर गहराई से चिंतन करती हैं कि भारत में पारसी होने का क्या अर्थ है और साथ ही कैसे उनका योगदान भारतीय होने का अभिन्न अंग बन गया। कपूर के हाथों में पारसियों की कहानी घटनाओं से भरा एक उत्तेजनापूर्ण रोमांच बन जाती है : चीन के साथ व्यापार पर हावी होने से लेकर बॉम्बे का पर्याय बनने तक, जो कि एक समय पर यकीनन, इसके पारसियों द्वारा परिभाषित शहर था; टाटा, मिस्त्री, गोदरेज़ और वाडिया की व्यावसायिक सफ़लता से लेकर एक पारसी द्वारा स्थापित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा कोविड-19 टीकों के निर्माण जैसे वर्तमान योगदान तक।

About Author

कूमी कपूर एक अग्रणी राजनीतिक पत्रकार हैं, जो दिल्ली में पहली महिला मुख्य रिपोर्टर और महिला ब्यूरो प्रमुख थीं। वह लगभग पांच दशकों से इस पेशे में हैं, और द इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे, द संडे मेल, द इंडियन पोस्ट, द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया और द मदरलैंड के साथ काम कर चुकी हैं। वह वर्तमान में द इंडियन एक्सप्रेस में सलाहकार संपादक हैं, जहां उनका लोकप्रिय कॉलम ‘इनसाइड ट्रैक’ रविवार को प्रकाशित होता है। उनकी पिछली क़िताब, द इमरजेंसी: अ पर्सनल हिस्ट्री, एक बेस्टसेलर थी।

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