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PERIYAR LALAI SINGH GRANTHAVALI (SET OF 5 BOOKS)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
DHARMVEER YADAV GAGAN
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹2,000 ₹800
Save: 60%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Weight | 1790 g |
---|---|
Book Type |
SKU:
Categories: Hindi, Uncategorized
Page Extent:
1936
मैं तो यही कहूँगा कि वर्णाश्रम धर्म, गहरी मानवीय असमानता के प्रति हमें सहिष्णु बनाता है। यह असमानता कई अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट होती है। इसमें शामिल हैं—आर्थिक, सामाजिक, पितृसत्ता, लैंगिकता, जाति प्रथा, आध्यात्मिक और सोच आदि की असमानता। ये एक-दूसरे को क्रमवार मजबूती देती हैं। भारतीय समाज इसके क्रूर दमन पर आधारित है। पूरी दुनिया में जिसकी कोई और मिसाल मिलना मुश्किल है। भारत के सभी सत्ताधारी वर्णाश्रम धर्म के मौन समर्थक हैं, ऐसा नहीं है, मुझे ऐसा लगता है कि वर्णाश्रम धर्म, वर्तमान सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा, हिन्दुत्व, का अभिन्न अंग है। इसके प्रवक्ता गोलवलकर ने साफ शब्दों में लिखा था कि वर्ण और आश्रम, समाज में हिन्दू ढाँचे की विशेषताएँ हैं। भारत में हिन्दुत्ववादी आन्दोलन के समर्थक वर्ण, आश्रम और जाति-प्रथा के सार्वजनिक व्यख्याता और प्रशंसक हैं। अगर नरमपंथी—हिन्दू राष्ट्रवादी, वर्णाश्रम धर्म के विरोध में हैं, तो वे हिन्दुत्व के प्रखर विरोध के लिए आगे क्यों नहीं आते हैं! और समतामूलक सोच और समाज का अभियान क्यों नहीं चलाते? यह ग्रंथ और पेरियार ललई सिंह का चिन्तन इसी बात को चरितार्थ करता है। —ज्यां द्रेज
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Description
मैं तो यही कहूँगा कि वर्णाश्रम धर्म, गहरी मानवीय असमानता के प्रति हमें सहिष्णु बनाता है। यह असमानता कई अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट होती है। इसमें शामिल हैं—आर्थिक, सामाजिक, पितृसत्ता, लैंगिकता, जाति प्रथा, आध्यात्मिक और सोच आदि की असमानता। ये एक-दूसरे को क्रमवार मजबूती देती हैं। भारतीय समाज इसके क्रूर दमन पर आधारित है। पूरी दुनिया में जिसकी कोई और मिसाल मिलना मुश्किल है। भारत के सभी सत्ताधारी वर्णाश्रम धर्म के मौन समर्थक हैं, ऐसा नहीं है, मुझे ऐसा लगता है कि वर्णाश्रम धर्म, वर्तमान सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा, हिन्दुत्व, का अभिन्न अंग है। इसके प्रवक्ता गोलवलकर ने साफ शब्दों में लिखा था कि वर्ण और आश्रम, समाज में हिन्दू ढाँचे की विशेषताएँ हैं। भारत में हिन्दुत्ववादी आन्दोलन के समर्थक वर्ण, आश्रम और जाति-प्रथा के सार्वजनिक व्यख्याता और प्रशंसक हैं। अगर नरमपंथी—हिन्दू राष्ट्रवादी, वर्णाश्रम धर्म के विरोध में हैं, तो वे हिन्दुत्व के प्रखर विरोध के लिए आगे क्यों नहीं आते हैं! और समतामूलक सोच और समाज का अभियान क्यों नहीं चलाते? यह ग्रंथ और पेरियार ललई सिंह का चिन्तन इसी बात को चरितार्थ करता है। —ज्यां द्रेज
About Author
पेरियार ललई सिंह आपका जन्म 1 सितम्बर, 1911 ई. को गाँव—कठारा, झींझक, जिला—कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। पिता—चौधरी गज्जु सिंह लघु-जमींदार थे। आप भूतपूर्व ग्वालियर नेशनल आर्मी में सन् 1933 में स्टेनोटाइपिस्ट-लिपिक पद पर सिपाही के रूप में भर्ती हुए। सन् 1945 में हाई-कमांडर हुए। देश की स्वतंत्रता के लिए 1945 ई. से 1947 ई. तक आन्दोलन किए। जेल गए। ब्रिटिश साम्राज्य विरोध के कारण आप वर्षों जेल में रहे। स्वतंत्रता के लिए जेल में 40 दिनों की लम्बी भूख हड़ताल की। सन् 1948 में स्वतंत्रता के साथ ग्वालियर सेंट्रल जेल से छूटे। आपको ‘उत्तर भारत का पेरियार’ कहा जाता है। आप नास्तिक थे। आप अंग्रेजी, पालि, प्राकृत, तमिल, मराठी, हिन्दी और उर्दू के अध्येता थे। इसमें, आप अंग्रेजी भाषा के विद्वान थे। आपको गणित और ज्यामिति का अद्भुत ज्ञान था। आपका निर्वाण 7 फरवरी, 1993 ई. को हो गया। आप अनन्य अध्येता, ऑर्गेनिक इंटेलेक्चुअल, चिन्तक, लेखक, कवि, नाटककार और आन्दोलनकारी विभूति थे।
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