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Raven Ki Lokkathayen
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Sushma Gupta
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
₹350 ₹263
Save: 25%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Weight | 363 g |
---|---|
Book Type |
SKU:
Categories: Classic Fiction, Hindi
Page Extent:
178
लोककथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का अटूट हिस्सा होती हैं, जो संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं, जिसकी वे लोककथाएँ हैं। सालों पहले ये केवल जबानी कही जाती थीं और कह-सुनकर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को पहुँचाई जाती थीं; इसलिए यह कहना मुश्किल है कि किसी भी लोककथा का मूल रूप क्या रहा हो! रैवन का जिक्र केवल कनाडा की लोककथाओं में ही नहीं है, बल्कि ग्रीस और रोम की दंतकथाओं में भी पाया जाता है। प्रशांत महासागर के उत्तर-पूर्व के लोगों में रैवन की जो लोककथाएँ कही-सुनी जाती हैं, उनसे पता चलता है कि वे लोग अपने वातावरण के कितने अधीन थे और उसका कितना सम्मान करते थे। रैवन कोई भी रूप ले सकता है— br>
जानवर का या आदमी का। वह कहीं भी आ-जा सकता है और उसके बारे में यह पहले से कोई भी नहीं बता सकता कि वह क्या करनेवाला है। रैवन की ये लोककथाएँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही, साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी। आशा है कि ये लोककथाएँ पाठकों का मनोरंजन तो करेंगी ही, साथ ही दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में जानकारी भी देंगी।.
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Lokkathayen” Cancel reply
Description
लोककथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का अटूट हिस्सा होती हैं, जो संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं, जिसकी वे लोककथाएँ हैं। सालों पहले ये केवल जबानी कही जाती थीं और कह-सुनकर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को पहुँचाई जाती थीं; इसलिए यह कहना मुश्किल है कि किसी भी लोककथा का मूल रूप क्या रहा हो! रैवन का जिक्र केवल कनाडा की लोककथाओं में ही नहीं है, बल्कि ग्रीस और रोम की दंतकथाओं में भी पाया जाता है। प्रशांत महासागर के उत्तर-पूर्व के लोगों में रैवन की जो लोककथाएँ कही-सुनी जाती हैं, उनसे पता चलता है कि वे लोग अपने वातावरण के कितने अधीन थे और उसका कितना सम्मान करते थे। रैवन कोई भी रूप ले सकता है— br>
जानवर का या आदमी का। वह कहीं भी आ-जा सकता है और उसके बारे में यह पहले से कोई भी नहीं बता सकता कि वह क्या करनेवाला है। रैवन की ये लोककथाएँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही, साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी। आशा है कि ये लोककथाएँ पाठकों का मनोरंजन तो करेंगी ही, साथ ही दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में जानकारी भी देंगी।.
About Author
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज-शास्त्र और अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी.एड.। सन् 1976 में वह नाइजीरिया चली गईं। वहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ इबादन से लाइब्रेरी साइंस में एम.एल.एस. किया और एक थियोलॉजिकल कॉलेज में दस वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया। भिन्न-भिन्न देशों में रहने के कारण उन्हें अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोककथाओं को जानने का अवसर मिला— कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से, जो केवल उन्हीं को उपलब्ध थे। इसलिए उन्होंने न्यूनतम हिंदी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोककथाओं को हिंदी में लिखना प्रारंभ किया। इन लोककथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोककथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है; पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोककथाएँ सम्मिलित की गई हैं। उनके द्वारा अभी तक 1, 200 से अधिक लोककथाएँ हिंदी में लिखी जा चुकी हैं। उन्हें ‘देश-विदेश की लोककथाएँ’ शृंखला में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है।.
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