Sharat Chandra Chattopadhyay (Set of 4 Books): Parineeta | Biraj Bahu | Grihdah | Shesh Parichay
Publisher:
Maple Press
| Author:
Sharat Chandra Chattopadhyay
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set (Paperback)
₹540 ₹432
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PISHARAT4
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
852
1. परिणीता :- शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनकी अध्कितर रचनाओं को हिन्दी में अनुवाद किया गया है। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में 15 सितंबर, 1876 में हुआ था। उनका बचपन कष्टों से भरा हुआ था। शरत्चन्द्र के जीवन पर रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का गहरा प्रभाव था। शरत्चन्द्र द्वारा रचित ‘परिणीता’ एक लोकप्रिय उपन्यास है। ललिता सुंदर एंव सादगी से परिपूर्ण लड़की है, जो बचपन से ही मुंहबोले भाई शेखर के साथ रहती है। शेखर ललिता से मन ही मन प्यार करने लगता है, जबकि ललिता इन सब बातों से अनजान है। अब तक ललिता को एक रुपये की भी जरूरत होती तो शेखर से ही मांगती थी, परंतु इन भावों को जानने के बाद क्या ललिता शेखर के सामने जा पाएगी… शरत्चन्द्र ने इस कहानी में स्त्री-पुरुष के छुपे हुए भाव को शब्दों द्वारा चित्रित किया है।
2. बिराज बहु :- इस उपन्यास में शरत्चन्द्र ने बड़ी सहजता से गांव की रूढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था को इंगित किया है। बिराज एक सीधी-सादी लड़की है, जो अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए समाज के हर एक दंश को सहती है। अपने चरित्र पर उठ रहे सवाल और निर्धनता से परेशान होकर वो भीख मांगने तक से परहेज नहीं करती है।
3. गृहदाह :- प्रस्तुत उपन्यास ‘गृहदाह’द्वारा शरत्चंद्र ने महिम, सुरेश और अचला के जटिल त्रिकोणीय प्रेम को दर्शाया है। मित्रता एवं प्रेम की जटिलता प्रस्तुत करता यह उपन्यास मानवीय रिश्तों की नाजुकता और जीवन की विलक्षणता की भावनाओं के बवंडर को पेश करता है जिसमें पाठक अपने आप को डूबता हुआ पायेंगे।
4. शेष परिचय :- शरत्चन्द्र द्वारा रचित ‘शेष परिचय’एक लोकप्रिय उपन्यास है।
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Description
1. परिणीता :- शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनकी अध्कितर रचनाओं को हिन्दी में अनुवाद किया गया है। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में 15 सितंबर, 1876 में हुआ था। उनका बचपन कष्टों से भरा हुआ था। शरत्चन्द्र के जीवन पर रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का गहरा प्रभाव था। शरत्चन्द्र द्वारा रचित ‘परिणीता’ एक लोकप्रिय उपन्यास है। ललिता सुंदर एंव सादगी से परिपूर्ण लड़की है, जो बचपन से ही मुंहबोले भाई शेखर के साथ रहती है। शेखर ललिता से मन ही मन प्यार करने लगता है, जबकि ललिता इन सब बातों से अनजान है। अब तक ललिता को एक रुपये की भी जरूरत होती तो शेखर से ही मांगती थी, परंतु इन भावों को जानने के बाद क्या ललिता शेखर के सामने जा पाएगी… शरत्चन्द्र ने इस कहानी में स्त्री-पुरुष के छुपे हुए भाव को शब्दों द्वारा चित्रित किया है।
2. बिराज बहु :- इस उपन्यास में शरत्चन्द्र ने बड़ी सहजता से गांव की रूढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था को इंगित किया है। बिराज एक सीधी-सादी लड़की है, जो अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए समाज के हर एक दंश को सहती है। अपने चरित्र पर उठ रहे सवाल और निर्धनता से परेशान होकर वो भीख मांगने तक से परहेज नहीं करती है।
3. गृहदाह :- प्रस्तुत उपन्यास ‘गृहदाह’द्वारा शरत्चंद्र ने महिम, सुरेश और अचला के जटिल त्रिकोणीय प्रेम को दर्शाया है। मित्रता एवं प्रेम की जटिलता प्रस्तुत करता यह उपन्यास मानवीय रिश्तों की नाजुकता और जीवन की विलक्षणता की भावनाओं के बवंडर को पेश करता है जिसमें पाठक अपने आप को डूबता हुआ पायेंगे।
4. शेष परिचय :- शरत्चन्द्र द्वारा रचित ‘शेष परिचय’एक लोकप्रिय उपन्यास है।
About Author
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय बंगाली भारत के एक प्रसिद्ध बंगाली उपन्यासकार थे। वह 20वीं सदी की शुरुआत के सबसे लोकप्रिय बंगाली उपन्यासकारों में से एक थे।
उनका बचपन और युवावस्था बेहद गरीबी में बीती क्योंकि उनके पिता मोतीलाल चट्टोपाध्याय एक आलसी और सपने देखने वाले व्यक्ति थे और अपने पांच बच्चों को बहुत कम सुरक्षा देते थे। शरतचंद्र ने बहुत कम औपचारिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्हें अपने पिता से कुछ मूल्यवान चीजें विरासत में मिलीं - उनकी कल्पनाशीलता और साहित्य के प्रति प्रेम।
उन्होंने किशोरावस्था में ही लिखना शुरू कर दिया था और तब लिखी गई उनकी दो कहानियाँ बची हैं- 'कोरेल' और 'काशीनाथ'। शरतचंद्र उस समय परिपक्व हुए जब सामाजिक चेतना के जागरण के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन भी गति पकड़ रहा था।
उनके अधिकांश लेखन में समाज की परिणामी अशांति की छाप दिखती है। एक विपुल लेखक, उन्होंने उपन्यास को इसे चित्रित करने के लिए एक उपयुक्त माध्यम पाया और, उनके हाथों में, यह सामाजिक और राजनीतिक सुधार का एक शक्तिशाली हथियार बन गया।
उनका बचपन और युवावस्था बेहद गरीबी में बीती क्योंकि उनके पिता मोतीलाल चट्टोपाध्याय एक आलसी और सपने देखने वाले व्यक्ति थे और अपने पांच बच्चों को बहुत कम सुरक्षा देते थे। शरतचंद्र ने बहुत कम औपचारिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्हें अपने पिता से कुछ मूल्यवान चीजें विरासत में मिलीं - उनकी कल्पनाशीलता और साहित्य के प्रति प्रेम।
उन्होंने किशोरावस्था में ही लिखना शुरू कर दिया था और तब लिखी गई उनकी दो कहानियाँ बची हैं- 'कोरेल' और 'काशीनाथ'। शरतचंद्र उस समय परिपक्व हुए जब सामाजिक चेतना के जागरण के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन भी गति पकड़ रहा था।
उनके अधिकांश लेखन में समाज की परिणामी अशांति की छाप दिखती है। एक विपुल लेखक, उन्होंने उपन्यास को इसे चित्रित करने के लिए एक उपयुक्त माध्यम पाया और, उनके हाथों में, यह सामाजिक और राजनीतिक सुधार का एक शक्तिशाली हथियार बन गया।
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