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Santosh Goyal ki
Lokpriya Kahaniyan
₹350 ₹263
Save: 25%
Shiksha Ke Dwandwa
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Pawan Sinha
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
₹350 ₹263
Save: 25%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Weight | 363 g |
---|---|
Book Type |
Category: Hindi
Page Extent:
178
शिक्षा के बारे में एक विचार सदैव आपके-हमारे मन पर हावी रहता है और वह यह कि बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी केवल और केवल शिक्षक की ही है। जरा सोचिए, आखिर बच्चे स्कूल क्यों जाते हैं? पढ़ने के लिए न! कौन पढ़ाता है? शिक्षक। तो इस लिहाज से बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी शिक्षक की ही हुई। शिक्षा के संदर्भ में यह सवाल अकसर उठता है कि क्या शिक्षा केवल स्कूल से जुड़ी हुई है? नहीं। लेखक की दृष्टि में शिक्षा और स्कूलिंग दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। शिक्षा एक बृहत् संकल्पना है और स्कूलिंग संकीर्ण संकल्पना। । ‘शिक्षा के द्वंद्व’ शिक्षा से जुड़े अनेक चिंतनीय और संवेदनशील मुद्दों पर बहुत खुलकर आपकी-हमारी चेतना की परीक्षा लेती है और हमारे चिंतन को जाग्रत् भी करती है; टिप्पणी करती है और सवाल भी उठाती है। मूल्य, धर्म, अभिभावक, शिक्षक, स्कूल, नीतियाँ और भारतीय समाज-सभी के संदर्भ में गहन चर्चा करती है। यह पुस्तक उन सभी के चिंतन को दिशा देती है, जो शिक्षा एवं इससे जुड़े मुद्दों को गहराई से समझना चाहते हैं। । शिक्षा, बच्चों और समाज से सरोकार रखने वाले हर आयु-वर्ग के पाठक के लिए एक पठनीय पुस्तक है।.
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Description
शिक्षा के बारे में एक विचार सदैव आपके-हमारे मन पर हावी रहता है और वह यह कि बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी केवल और केवल शिक्षक की ही है। जरा सोचिए, आखिर बच्चे स्कूल क्यों जाते हैं? पढ़ने के लिए न! कौन पढ़ाता है? शिक्षक। तो इस लिहाज से बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी शिक्षक की ही हुई। शिक्षा के संदर्भ में यह सवाल अकसर उठता है कि क्या शिक्षा केवल स्कूल से जुड़ी हुई है? नहीं। लेखक की दृष्टि में शिक्षा और स्कूलिंग दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। शिक्षा एक बृहत् संकल्पना है और स्कूलिंग संकीर्ण संकल्पना। । ‘शिक्षा के द्वंद्व’ शिक्षा से जुड़े अनेक चिंतनीय और संवेदनशील मुद्दों पर बहुत खुलकर आपकी-हमारी चेतना की परीक्षा लेती है और हमारे चिंतन को जाग्रत् भी करती है; टिप्पणी करती है और सवाल भी उठाती है। मूल्य, धर्म, अभिभावक, शिक्षक, स्कूल, नीतियाँ और भारतीय समाज-सभी के संदर्भ में गहन चर्चा करती है। यह पुस्तक उन सभी के चिंतन को दिशा देती है, जो शिक्षा एवं इससे जुड़े मुद्दों को गहराई से समझना चाहते हैं। । शिक्षा, बच्चों और समाज से सरोकार रखने वाले हर आयु-वर्ग के पाठक के लिए एक पठनीय पुस्तक है।.
About Author
पवन सिन्हा, जो 'गुरुजी' के नाम से विख्यात हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय के मोतीलाल नेहरू कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग में पिछले 23 वर्षों से वरिष्ठ व्याख्याता हैं। पवन सिन्हा समाज-सुधार आंदोलन के लिए जाने जाते हैं। वे 'पावन चिंतन धारा आश्रम', 'सामाजिक समरसता अभियान', 'युवा अभ्युदय मिशन', बच्चों के तन-मन के विकास के लिए 'गप्प चौराहा', 'चौपाल', अक्षम तथा स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के लिए 'ऋषिकुलशाला' और सांस्कृतिक मुद्दों एवं ज्वलंत मुद्दों के प्रति जागृति के लिए 'स्वराज सभा' आदि प्रकल्पों का संचालन कर रहे हैं। उन्होंने India's Foreign Policy, Defence & Development 7211 Right of the Child to Education: The Constitutional Mandate and Implementation पर शोध-प्रबंध लिखे हैं। शिक्षा, मानव व्यवहार, भारतीय इतिहास व संस्कृति, आतंकवाद आदि विषयों पर अनेक व्याख्यान दिए हैं। अनेक पुस्तकों एवं लेखों के लेखक पवन सिन्हा को वर्ष 2012-13 शिक्षा का 'महर्षि वेदव्यास राष्ट्रीय सम्मान' प्राप्त हुआ
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