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Pracheen Bharatiya Dharm Evam Darshan
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Pracheen Bhartiya Sikke
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Shrimad Bhagvaddarshan
Publisher:
Motilal Banarsidass Publishers
| Author:
Hari Om Shrivastva
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹450 ₹383
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In stock
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1-4 Days
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Category: Hindi
Page Extent:
प्रस्तुत धर्मग्रन्थ ‘श्रीमद् भगदर्शन में श्रीमद् समन्द है। ‘दर्शन’ शब्द द्वि-अर्थी है। प्रथम अर्थ धर्म के स्वाध्याय के फलस्वरूप अपने यावत् मानसकोश में सृष्टि के प्रत्येक अयु में व्याप्त परम भगवान विष्णु का साक्षात्कार (दर्शन) करना है। द्वितीय अर्थसृष्टि का सर्वन स्थिति और ससंहार (उद्भव स्थिति और प्रलय अथवा रचना, रक्षा और विनाश करने वाले अनादि अनन्य अखण्ड-अछेप- अभेध-असीम-अच्युत-अचिन्त्य-सत्यसन्ती सर्व सर्वतमान परब्रहा परमात्मा के सम्बन्ध में दर्शन-अवधारणा संकल्प अभिमत-मत है। ग्रन्थ का अध्ययन करने से परत्रा परमात्मा के पवित्र नाम-रूप-लीलाओं के रूप में प्रवाहमान निर्मल और अविरल सलिल में निमन्दन करने का सुदुर्लभ पावन अवसर सुलभ होता है। ग्रन्य में स्वस्थ मन, स्वस्थ तन और आध्यात्मिक योग विषयों का पृथक् पृथक् प्रकरणों में सम्यक् निरूपण किया गया है।
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Description
प्रस्तुत धर्मग्रन्थ ‘श्रीमद् भगदर्शन में श्रीमद् समन्द है। ‘दर्शन’ शब्द द्वि-अर्थी है। प्रथम अर्थ धर्म के स्वाध्याय के फलस्वरूप अपने यावत् मानसकोश में सृष्टि के प्रत्येक अयु में व्याप्त परम भगवान विष्णु का साक्षात्कार (दर्शन) करना है। द्वितीय अर्थसृष्टि का सर्वन स्थिति और ससंहार (उद्भव स्थिति और प्रलय अथवा रचना, रक्षा और विनाश करने वाले अनादि अनन्य अखण्ड-अछेप- अभेध-असीम-अच्युत-अचिन्त्य-सत्यसन्ती सर्व सर्वतमान परब्रहा परमात्मा के सम्बन्ध में दर्शन-अवधारणा संकल्प अभिमत-मत है। ग्रन्थ का अध्ययन करने से परत्रा परमात्मा के पवित्र नाम-रूप-लीलाओं के रूप में प्रवाहमान निर्मल और अविरल सलिल में निमन्दन करने का सुदुर्लभ पावन अवसर सुलभ होता है। ग्रन्य में स्वस्थ मन, स्वस्थ तन और आध्यात्मिक योग विषयों का पृथक् पृथक् प्रकरणों में सम्यक् निरूपण किया गया है।
About Author
डॉ० हरिओम् श्रीवास्तव (फाल्गुन, कृष्ण, प्रतिप्रदा, विक्रम संवत् 2007) उत्तर प्रदेश के ग्राम रेहरा कैथवलिया, जनपद सिद्धार्थनगर में जन्मे हैं। डॉ० श्रीवास्तव ने विद्या वाचस्पति (पी.एच.डी.) शिक्षा प्राप्त की है। डॉ श्रीवास्तव उच्च शिक्षा विभाग में शिक्षक रह चुके हैं। वे अपने को परब्रह्म परमात्मा का नित्य सेवक मानते हैं। विश्वविद्यालयों के भूगोल विभागों, भौगोलिक परिषदों द्वारा आयोजित सेमिनारों, भारतीय विज्ञान कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशनों में सक्रिय सहभागिता कर चुके हैं। डॉ० श्रीवास्तव अध्ययन, लेखन, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों द्वारा आयोजित सांस्कृतिक धार्मिक आयोजनों में सक्रिय रूचि रखते हैं।
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