जैनेन्द्र कुमार का कालजयी उपन्यास है। “इस पुस्तक को मैंने एक बार फिर देख लिया है। जहाँ-तहाँ से छुआ भी है! किन्हीं स्थलों पर झलक में जरा कुछ अंतर भी हो जाने दिया है। पर सब ऐसे कि पाठक की सुनीता वही रही है। -जैनेन्द्र कुमार
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Description
जैनेन्द्र कुमार का कालजयी उपन्यास है। “इस पुस्तक को मैंने एक बार फिर देख लिया है। जहाँ-तहाँ से छुआ भी है! किन्हीं स्थलों पर झलक में जरा कुछ अंतर भी हो जाने दिया है। पर सब ऐसे कि पाठक की सुनीता वही रही है। -जैनेन्द्र कुमार
About Author
प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्र कुमार (२ जनवरी, १९०५- २४ दिसंबर, १९८८) का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं।
जैनेंद्र कुमार का जन्म २ जनवरी सन १९०५, में अलीगढ़ के कौड़ियागंज गांव में हुआ। २४ दिसम्बर १९८८ को उनका निधन हो गया।
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