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Being Ram : Insights into Ramayana - Global Encyclopedia of the Ramayana
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Yeh Likhta Hoon
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
प्रयाग शुक्ल
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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9789357757102
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
74
कवि, कथाकार और कला-आलोचक प्रयाग शुक्ल ने 1968 में छपे अपने पहले संग्रह ‘कविता सम्भव’ से हर मानवीय अनुभव को कविता में सम्भव करने की जिस संवेदनात्मक सामर्थ्य को प्रस्तुत किया था, वह इस सातवें कविता-संग्रह तक आते-आते एक ज़्यादा व्यापक फलक और असन्दिग्ध विश्वसनीयता प्राप्त कर चुकी है। यह लिखता हूँ अपने नाम से भी एक तरह से कविता की अन्तहीन सम्भावना और सार्थकता को प्रतिष्ठित करता दिखाई देता है।
प्रयाग शुक्ल की कविता शुरू से ही मनुष्य, जीवन, प्रकृति और मन की तमाम आवाज़ों और व्यवहारों से गहरे जुड़ी रही है और यह संलग्नता उनके हर नये संग्रह के साथ-साथ फैलती और गहरी होती रही है। वह ऐसी कविता है जो एक विकल लेकिन अविचल स्वर में ‘मर्म भरा मानवीय संवाद’ करना और समाज में उसकी ज़रूरत को बनाये रखना अपना उद्देश्य मानती आयी है। प्रयाग इसीलिए हमारे जीवन में अब भी बचे हुए स्पन्दनों, अच्छी स्मृतियों और नैतिक कल्पनाओं को सबसे पहले देख-पहचान लेते हैं और घोर हताशा में से एक मानवीय उम्मीद को खोज निकालते हैं। जीवन की विसंगति-विषमता, नष्ट या गायब हो रही चीज़ों की ओर भी उनकी दृष्टि उतनी ही प्रखरता से जाती है, लेकिन लौटकर वह एक वैकल्पिक, मानवीय, सुन्दर और नैतिक जीवन की खोज के लिए भी बेचैन रहती है।
कहना न होगा कि यह लिखता हूँ में प्रयाग शुक्ल की कविता के ये बुनियादी तत्त्व तो हैं ही, कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो उनकी कविता में पहली बार घटित हुई हैं। इस संग्रह में संकलित ‘विधियाँ’ सीरीज़ की कविताएँ एक तरफ़ उनकी कविता में एक नयी प्रयोगशीलता का संकेत देती हैं तो दूसरी तरफ़ कुछ बहुत सघन, दृश्यात्मक और आन्तरिक लय से सम्पन्न कविताएँ भी हैं जो हिन्दी कविता की निराला से शुरू हुई परम्परा से संवाद करती दिखती हैं। वर्तमान में मज़बूती से खड़े होकर समय के दो ध्रुवों से संवाद प्रयाग शुक्ल की कविता का एक नया आयाम है।
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Description
कवि, कथाकार और कला-आलोचक प्रयाग शुक्ल ने 1968 में छपे अपने पहले संग्रह ‘कविता सम्भव’ से हर मानवीय अनुभव को कविता में सम्भव करने की जिस संवेदनात्मक सामर्थ्य को प्रस्तुत किया था, वह इस सातवें कविता-संग्रह तक आते-आते एक ज़्यादा व्यापक फलक और असन्दिग्ध विश्वसनीयता प्राप्त कर चुकी है। यह लिखता हूँ अपने नाम से भी एक तरह से कविता की अन्तहीन सम्भावना और सार्थकता को प्रतिष्ठित करता दिखाई देता है।
प्रयाग शुक्ल की कविता शुरू से ही मनुष्य, जीवन, प्रकृति और मन की तमाम आवाज़ों और व्यवहारों से गहरे जुड़ी रही है और यह संलग्नता उनके हर नये संग्रह के साथ-साथ फैलती और गहरी होती रही है। वह ऐसी कविता है जो एक विकल लेकिन अविचल स्वर में ‘मर्म भरा मानवीय संवाद’ करना और समाज में उसकी ज़रूरत को बनाये रखना अपना उद्देश्य मानती आयी है। प्रयाग इसीलिए हमारे जीवन में अब भी बचे हुए स्पन्दनों, अच्छी स्मृतियों और नैतिक कल्पनाओं को सबसे पहले देख-पहचान लेते हैं और घोर हताशा में से एक मानवीय उम्मीद को खोज निकालते हैं। जीवन की विसंगति-विषमता, नष्ट या गायब हो रही चीज़ों की ओर भी उनकी दृष्टि उतनी ही प्रखरता से जाती है, लेकिन लौटकर वह एक वैकल्पिक, मानवीय, सुन्दर और नैतिक जीवन की खोज के लिए भी बेचैन रहती है।
कहना न होगा कि यह लिखता हूँ में प्रयाग शुक्ल की कविता के ये बुनियादी तत्त्व तो हैं ही, कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो उनकी कविता में पहली बार घटित हुई हैं। इस संग्रह में संकलित ‘विधियाँ’ सीरीज़ की कविताएँ एक तरफ़ उनकी कविता में एक नयी प्रयोगशीलता का संकेत देती हैं तो दूसरी तरफ़ कुछ बहुत सघन, दृश्यात्मक और आन्तरिक लय से सम्पन्न कविताएँ भी हैं जो हिन्दी कविता की निराला से शुरू हुई परम्परा से संवाद करती दिखती हैं। वर्तमान में मज़बूती से खड़े होकर समय के दो ध्रुवों से संवाद प्रयाग शुक्ल की कविता का एक नया आयाम है।
About Author
प्रयाग शुक्ल -
कवि, कथाकार, निबन्धकार, अनुवादक, कला व फ़िल्म-समीक्षक ।
28 मई, 1940 को कोलकाता में जन्म। कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातक। यह जो हरा है, इस पृष्ठ पर, सुनयना फिर यह न कहना, यानी कई वर्ष समेत 10 कविता-संग्रह, तीन उपन्यास, छह कहानी-संग्रह और यात्रा-वृत्तान्तों की भी कई पुस्तकें प्रकाशित ।
कला-सम्बन्धी पुस्तकों में आज की कला, हेलेन गैनली की नोटबुक; कला-लेखन संचयन कला की दुनिया में, हुसेन की छाप, स्वामीनाथन : एक जीवनी; फ़िल्म-समीक्षा की पुस्तक जीवन को गढ़ती फ़िल्में चर्चित-प्रशंसित हैं।
बांग्ला से रवीन्द्रनाथ ठाकुर की गीतांजलि का अनुवाद और उनके कुछ अन्य गीतों का भी, जो सुनो! दीपशालिनी में संकलित हैं। बांग्ला से ही जीवनानन्द दास, शंख घोष और तसलीमा नसरीन की कविताओं के भी अनुवाद किये हैं। बंकिमचन्द्र के प्रतिनिधि निबन्धों के अनुवाद पर साहित्य अकादेमी का 'अनुवाद पुरस्कार' प्राप्त हुआ है। साहित्य अकादेमी से ही ओक्तावियो पाज़ की कविताएँ पुस्तक प्रकाशित । आलोचना की एक पुस्तक अर्ध विराम और निबन्धों का संकलन हाट और समाज भी उपलब्ध हैं। यात्रा-सम्बन्धी पुस्तकों में सम पर सूर्यास्त, सुरगाँव बंजारी, त्रांदाइम में ट्राम, ग्लोब और गुब्बारे उल्लेखनीय हैं। सम्पादित पुस्तकें हैं : कल्पना-काशी अंक, कविता नदी, कला और कविता, रंग तेन्दुलकर, अंकयात्रा। शीघ्र प्रकाश्य पुस्तकें : फिर कोई फूल खिला (ललित टिप्पणियाँ), वे मुझे बुला रहे हैं (अनुवाद, विश्व-कविता)। बच्चों के लिए लिखने में विशेष रुचि । बाल-साहित्य की एक दर्जन किताबें प्रकाशित-चर्चित ।
सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन और चित्र-रचना ।
ई-मेल : prayagshukla2018@gmail.com
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