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Ziladhikari (PB)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Alok Ranjan
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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9788171197019
Category Hindi
Category: Hindi
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ज़िला प्रशासन में ज़िलाधिकारी की भूमिका सबसे अहम होती है। ज़िलाधिकारी ही ज़िले में शासन का सबसे उत्तरदायी प्रतिनिधि होता है। उसका काम होता है कि वह सरकार की नीतियों और परिकल्पनाओं को काग़ज़ से निकलकर यथार्थ रूप में कार्यान्वित करे। साथ ही उसे जनता की समस्याओं और अपेक्षाओं से भी सीधे जुड़ना होता है। इस प्रकार हम देखते है कि आज के ज़िलाधिकारी की ज़िम्मेदारियाँ पूर्व के ज़िलाधिकारी के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा चुनौतीपूर्ण और बहुआयामी होती हैं।
यह पुस्तक ज़िलाधिकारी की इन्हीं ज़िम्मेदारियों का बहुत विश्वसनीय और सघन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। ज़िला प्रशासन और ज़िला प्रमुख के विषय पर अभी तक उपलब्ध सूचनात्मक किताबों से यह पुस्तक इसलिए अलग है कि इसमें लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर उन परिस्थितियों का व्यावहारिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है जो किसी भी ज़िलाधिकारी के सामने कभी भी आ सकती हैं। श्री आलोक रंजन उत्तर प्रदेश के पाँच जनपदों—इलाहाबाद, आगरा, ग़ाज़ियाबाद, बाँदा और ग़ाज़ीपुर में बतौर ज़िलाधिकारी कार्य कर चुके हैं। इस दौरान उन्हें जो अनुभव हुए, उन्हीं के आधार पर उन्होंने इस पुस्तक की रचना की है। ज़ाहिर है कि उनके ये अनुभव ज़िला प्रशासन के सभी पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। लेखक ने प्रकरण अध्ययन (केस स्टडी) प्रविधि के द्वारा ज़िला प्रशासन की चुनौतियों को बहुत सरल और सुगम तरीक़े से प्रस्तुत किया है।
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Description
ज़िला प्रशासन में ज़िलाधिकारी की भूमिका सबसे अहम होती है। ज़िलाधिकारी ही ज़िले में शासन का सबसे उत्तरदायी प्रतिनिधि होता है। उसका काम होता है कि वह सरकार की नीतियों और परिकल्पनाओं को काग़ज़ से निकलकर यथार्थ रूप में कार्यान्वित करे। साथ ही उसे जनता की समस्याओं और अपेक्षाओं से भी सीधे जुड़ना होता है। इस प्रकार हम देखते है कि आज के ज़िलाधिकारी की ज़िम्मेदारियाँ पूर्व के ज़िलाधिकारी के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा चुनौतीपूर्ण और बहुआयामी होती हैं।
यह पुस्तक ज़िलाधिकारी की इन्हीं ज़िम्मेदारियों का बहुत विश्वसनीय और सघन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। ज़िला प्रशासन और ज़िला प्रमुख के विषय पर अभी तक उपलब्ध सूचनात्मक किताबों से यह पुस्तक इसलिए अलग है कि इसमें लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर उन परिस्थितियों का व्यावहारिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है जो किसी भी ज़िलाधिकारी के सामने कभी भी आ सकती हैं। श्री आलोक रंजन उत्तर प्रदेश के पाँच जनपदों—इलाहाबाद, आगरा, ग़ाज़ियाबाद, बाँदा और ग़ाज़ीपुर में बतौर ज़िलाधिकारी कार्य कर चुके हैं। इस दौरान उन्हें जो अनुभव हुए, उन्हीं के आधार पर उन्होंने इस पुस्तक की रचना की है। ज़ाहिर है कि उनके ये अनुभव ज़िला प्रशासन के सभी पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। लेखक ने प्रकरण अध्ययन (केस स्टडी) प्रविधि के द्वारा ज़िला प्रशासन की चुनौतियों को बहुत सरल और सुगम तरीक़े से प्रस्तुत किया है।
About Author
आलोक रंजन
9 मार्च, 1956 में जन्मे आलोक रंजन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेन कॉलेज से बी.ए. ऑनर्स (अर्थशास्त्र) की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात् इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद से एम.बी.ए. किया। वर्ष 1978 में श्री रंजन का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया। वे क्रमश: ग़ाज़ीपुर, बाँदा, ग़ाज़ियाबाद, आगरा और इलाहाबाद ज़िलों के ज़िलाधिकारी पद पर रहे। इसके अतिरिक्त प्रशासक नगर महापालिका, इलाहाबाद नगर निगम; उपाध्यक्ष, इलाहाबाद विकास प्राधिकरण; प्रबन्ध निदेशक, स्पिनिंग मिल्स; अपर निदेशक, उद्योग के पदों पर भी आसीन रहे। वे सचिव, बेसिक शिक्षा एवं सचिव, वित्त के पद पर भी रहे हैं। वे सचिव, मुख्यमंत्री के पद पर भी रहे। ज़िलाधिकारी, आगरा के कार्यकाल में उनके द्वारा सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का सफल संचालन किया गया तथा बेसिक शिक्षा में रहते हुए उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा की दिशा में आनेवाली समस्याओं को देखा व परखा और उस पर उनकी लेखनी चली। उनकी इस कृति का नाम है—‘टुवड् र्स अडल्ट्स लिट्रेसी इन इंडिया’, ‘मीनिंग ए डिफरेंस—आई.ए.एस. एज ए कैरियर’ पुस्तक इन दिनों चर्चा में है।
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